Monday, July 26, 2021

मार्ग और मकान स्टेट कार्यालय RTI के भंवर में ...! गुजरात राज्य सूचना आयोग कमिश्नर के सामने खुलेगा राज..! निवृत्त करार आधारित अधिकारी होंगे बेनकाब..!




गुजरात राज्य सूचना आयोग कमिश्नर के सामने खुलेगा राज..! 
निवृत्त करार आधारित अधिकारी होंगे बेनकाब..! 



   गुजरात राज्य आज भारत के सबसे समृद्ध शक्तिशाली, पारदर्शी, विकसित राज्यों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जिसकी चर्चा आज देश विदेश में कई गणमान्य शीर्ष राजनीति के धुरंधर हमेशा करते हुए देखे जाते हैं। हकीकत में भी गुजरात का हवामान और समुद्र तट से घिरे होने से कपड़ा उद्योग, जरी उद्योग, हीरा उद्योग मील , फेक्ट्री वगैरह इसकी शान में कसीदे पढ़ती नजर आती है। गुजरात की धरती बड़े-बड़े उद्योगपतियों को आज भी भी जन्मभूमि है। गुजरात को धरती का यदि स्वर्ग कहा जाये फिर कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।  गुजरात के उद्योगपतियों का वर्षों से देश ही नहीं लगभग विश्व के बड़े भागों पर किसी न किसी रूप में आज भी कब्जा है। आज भी यहां बड़े बड़े राजाओं का राजमहल है। गुजरात राज्य के विकास समृद्धि पारदर्शिता आज भी वेमिशाल है। सभी धर्मों का सम्मान यहां  विश्वविख्यात है। 
      गुजरात राज्य में सबसे अधिक लोकप्रिय मार्ग और मकान विभाग यहां कई खंडों में बटा है। जिसमें राज्य और पंचायत दो प्रमुख भाग है। वैसे केन्द्र सरकार में भी इसी नाम से एक विभाग है। जिसका संचालन केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता है। परंतु आज भारत सरकार के सर्वोच्च सर्वश्रेष्ठ, समृद्ध, विकसित, पारदर्शितापूर्ण राज्य गुजरात के सर्वोच्च विभागों में प्रिय मार्ग और मकान की है। गुजरात राज्य सरकार इस विभाग में विकास के लिए दिल खोलकर सभी योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए फंड मुहैया करवाती है। परंतु कुछ वर्षों से इस विभाग में दीमक की तरह कुछ वायरस इसे खोखला करने में जुटे हैं। और जैसा कि आज एक अदृश्य वायरस ऋषि मुनियों का भारत ही नहीं लगभग विश्व में तबाही के कगार पर पहुंचा दिया है। उसी तरह ऐसे कई उदाहरण हैं जो सरकार को बदनाम करने में दिलचस्पी दिखाई है। जिसकी फरियाद लेकर सत्यता को समझने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचनाएं मांगी गई । और जैसा कि कुछ अदृश्य है धीमें धीमें अब एक एक करके बाहर निकल रहे हैं।


     सूचना अधिकार अधिनियम 2005 जैसा कि नियम से ही ज्ञात होता है कि आज यह 16 वे वर्ष में प्रवेश ही नहीं आधा वर्ष भी पूरा कर लिया है। इसके पहले वर्ष 2018 में ऐसे ही मामलों में एक सूचना आयुक्त ने सुनवाई के दौरान खुद ही कहा था कि गुजरात राज्य में अभी तक सूचना अधिकार अधिनियम लागू नहीं हो पाया है। हालांकि उसे जिले के कलेक्टर श्री को पक्षकार बनाते हुए अपनी भड़ास निकाल कर हुक्म दे कर मामले से निकलने में जरूर कामयाब हो गए। आज जहां तक जानकारी मिली है नवसारी, सुरत, वलसाड, तापी जैसे दक्षिण गुजरात जिसे गुजरात की आर्थिक राजधानी मानी जाती है। ऐसे जिलों के कई  सूचना अधिकारी गणों को सिर्फ फाइलों में सूचना अधिकारी नियुक्त किया गया है। हालांकि हकीकत में न ही इन सबको इस सर्वोच्च नियम के बारे में न ही कोई तालीम दी गई है और न ही ए जानना चाहते हैं। अब जब जहां ऐसी हालत होगी वहां जवाब और नियमों की धज्जियां किस तरह उड़ाई जाती है इसके लिए फिलहाल शब्दकोश में शब्दों को ढूंढना समुद्र से मोती निकालने से कम नहीं होगा। 


     राजनीति के सर्वोच्च नेता लगभग अपने सभी वक्तव्यों में गरीब, आदिवासी, दलित, शोषित, वंचित अब एक नया आर्थिक पिछड़े जैसे शब्दों से हर वार तालीयो से तारीफों का पुल बनाते नहीं थकते। और इन्हीं महानुभावों के अधिकारीगण हैं जो लगभग इसी समाज से आते हैं उन्हें इसका न तो मतलब पता है न ही उसके समकक्ष भी सोचने का सपने में भी ख्याल आता है। 
गुजरात के लगभग सभी कार्यालयों में लगभग सभी वर्ग तीन और चार के कर्मचारी मजदूर आज वर्षों से करार आधारित एजेंसी अथवा सरकार के द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत काम करते हैं। पहले यह सिलसिला वर्ग तीन और चार में पाया जाता था। अब इसे वर्ग एक और दो में समावेश किया गया है।  हालांकि सरकार के नियमों की मानें तो सभी पारदर्शी है। परंतु आज कुछ शासन प्रशासन की मिलीभगत उन नियमों को निर्वस्त्र करने में जरूर कामयाब हो चूके हैं। सरकार सबका साथ, सबका विकास सबका विश्वास अपना उद्देश्य मानती है। परंतु यह आज लगभग राजनीति की फाइलों से निकलकर प्रशासन तक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया है। हालत बद से बदतर होती जा रही है। एक लाख रुपए से अधिक वेतनभोगी के कार्यालय में ही पांच हजार रुपए का कर्मचारी मजदूर काम करने में मजबूर देखें जा सकते हैं। जब कि यही साहबजादे हर छ महीने में मिनिमम लघुत्तम मासिक वेतन धारा जैसे सरकार के परिपत्र पर सही करते हैं। 


           गुजरात राज्य सरकार द्वारा आज वर्षों से सभी जिलों में श्रम आयुक्त कार्यालय बनाकर पूरी एक फौज तैनात किया है। सभी सुविधाओं से सुसज्जित किया है। परंतु मजाल है कि एक भी अधिकारी गरीब मजदूर कर्मचारी दलित शोषित आदिवासी को लघुत्तम मासिक वेतन के मुताबिक एक सरकारी अर्धसरकारी अथवा फेक्ट्री वगैरह में जांच कर नियम बद्ध करवाने की कोशिश भी कर दे।  सरकार की पूरे देश में कर्मचारी राज्य बीमा निगम सबसे सफल योजना अमृत तुल्य है। पऱतु नवसारी जैसे सामान्य स्तर के जिलों में भी इसके अमलीजामा पहनाने के लिए किसी भी अधिकारी ने आज तक जुर्रत नहीं दिखाई।  आज ऐसे कई सुलझे अनसुलझे सवालों का जवाब गुजरात की आर्थिक राजधानी मानी जाने वाली सुरत के निवृत्त करार आधारित मार्ग और मकान वर्ग एक हालांकि नियमों की मानें तो तथाकथित अधिकारी के पास ऐसी कोई सत्ता नहीं है परन्तु ऐसे नियमों की जानकारी उनके पास होना अनिवार्य है। गुजरात राज्य सूचना आयुक्त के सामने जवाब देने के लिए वाध्य है। जब कि लिखित में बता चुके हैं कि यह उनका काम नहीं है। अब इसे किस तरह गुजरात राज्य सूचना आयुक्त संज्ञान में लेते हैं यह समय चक्र में फिलहाल गतिमान है। सभी जानकारों और विद्वान इस पर नजर रहेगी।


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