Sunday, May 9, 2021

महाराणा प्रताप की कहानी और शुभकामना संदेश ....


महाराणा प्रताप की कहानी 
और शुभकामना संदेश 

महाराणा प्रताप को राजपूत वीरता, शिष्टता और दृढ़ता की एक मिसाल माना जाता है। दुशमनों के सामने सिर्फ महाराणा प्रताप का नाम लेने भर से सेना के पसीने छूट जाते थे। एक ऐसा राजा जो विषम से विषम परिस्थिति में किसी के आगे झुका नहीं। महाराणा प्रताप को जितना उनकी बहादुरी के लिए जाना जाता है, उतनी ही उनकी दरियादिली और प्रजा व राज्य से उनका प्रेम जगजाहिर है। बताते हैं कि प्रताप कभी भी निहत्थे दुश्मन के लिए भी एक तलवार रखते थे। महाराणा प्रताप पर बहुत सी फिल्में और धारावाहिक बनें। कई शोध हुए और उनपर किताबें भी लिखी गई। आज भी प्रताप की गौरवगाथा बच्चों को पढ़ाई जाती है। ताकि उनकी भी रगों में महाराणा प्रताप की तरह देशभक्ति और बहादुरी का प्रवाह बना रहे। आइए नजर डालते हैं भारत का वीर पुत्र कहा जाने वाले महाराणा प्रताप के इतिहास, जीवन परिचय, युद्ध, उनके विचारों और उनकी शौर्य से जुड़े कुछ किस्से कहानियों पर  -
महाराणा प्रताप कौन थे-

महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे। वे उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। वे अकेले ऐसे वीर थे, जिसने मुग़ल बादशाह अकबर की अधीनता किसी भी प्रकार स्वीकार नहीं की। वे हिन्दू कुल के गौरव को सुरक्षित रखने में सदा तल्लीन रहे। वीरता और आजादी के लिए प्यार तो राणा के खून में समाया था क्योंकि वह राणा सांगा के पोते और उदय सिंह के पुत्र थे। राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध हल्दीघाटी का युद्ध था जो मुगल बादशाह अकबर और महराणा प्रताप के बीच हुआ था। अकबर और महाराणा प्रताप की शत्रुता जगजाहिर थी। लेकिन इसके बावजूद जब अकबर को महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर मिली तो वो बिल्कुल मौन हो गया था और उसकी आँखों मे आंसू आ गए थे। वह महाराणा प्रताप के गुणों की दिल से प्रशंसा करता था।
महाराणा प्रताप जयंती -

महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। प्रताप की जयंती के मौके पर देशभर में विभिन्न  तरहे के आयोजन किये जाते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पण की जाती है। वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजी वर्ष के अनुसार प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था, इसीलिए उस दिन हिन्दू वर्ष के अनुसार ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि थी, इसीलिए बहुत सी जगह 9 मई को उनकी जयंती मनाई जाती है। 

महाराणा प्रताप जयंती शुभकामना संदेश 

महाराणा प्रताप ऐसे शूरवीर थे जो अपनी मातृभूमि की रक्षा और आजादी के लिए पूरे जीवन लड़ते रहे। उन्होंने अपने जीवन में तमाम कष्ट सहन करते हुए भी पूरे देश के सामने स्वतंत्रता, स्वाभिमान और एक सच्चे देशभक्त की मिसाल पेश की और भारत की धरती को गौरवान्वित किया।
 महाराणा प्रताप की जयंती पर शुभकामना संदेश 
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- महाराणा प्रताप की कर्म से धरती-नभ महिमा मंडित है,
इनकी आन-बान-शान की गरिमा का यशगान अभी तक गुंजित है। जय हो महराणा प्रताप जी की ...
- हर मां कि ये ख्वाहिश है, कि एक प्रताप वो भी पैदा करे। 
देख के उसकी शक्ती को, हर दुशमन उससे डरा करे। महाराणा प्रताप जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ...
- करता हूं नमन मैं प्रताप को, जो वीरता का प्रतीक हैं।
तू लौह-पुरुष, तू मातृ-भक्त, तू अखण्डता का प्रतीक है। महाराणा प्रताप जयंती की शुभकामनाएं ...
- था साथी तेरा घोड़ा चेतक, जिस पर तू सवारी करता था।
थी तुझमे कोई खास बात, कि अकबर तुझसे डरता था। धन्य हैं महाराणा प्रताप ...
- जब-जब तेरी तलवार उठी, तो दुश्मन टोली डोल गई। 
फीकी पड़ी दहाड़ शेर की, जब-जब तुने हुंकार भरी। 

महाराणा प्रताप जयंती की शुभकामनाएं 

- फीका पड़ा था तेज सूरज का, जब माथा ऊंचा तू करता था।
फीकी हुई बिजली की चमक, जब-जब आंख खोली प्रताप ने..
- है धर्म हर हिन्दुस्तानी का तेरे जैसा बनने का। 
चलना है अब तो उसी मार्ग, जो मार्ग दिखाया प्रताप ने। 
महाराणा प्रताप जयंती की शुभकामनाएं ...
- पूत तो सभी होते हैं पर
महाराणा प्रताप जैसे सपूत नहीं होते। 
आप सभी को महाराणा प्रताप जयंती की शुभकामनाएं ...
- धन्य हुआ रे राजस्थान,जो जन्म लिया यहां प्रताप ने।
धन्य हुआ रे सारा मेवाड़, जहां कदम रखे थे प्रताप ने।
- प्रताप का सिर कभी झुका नहीं
इस बात से अकबर भी शर्मिंदा था
मुगल कभी चैन से सो ना सके
जब तक मेवाड़ी राणा जिंदा था। महाराणा प्रताप की जयंती पर शत-शत नमन ...
- राणा प्रेरणा की मिसाल बन गये,
दुश्मनों से ऐसे लड़े कि महान बन गये। 
महाराणा प्रताप जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ....
- जय महाराणा प्रताप, जय मेवाड़, जय एकलिंग जी…
महाराणा प्रताप का इतिहास -
महाराणा प्रताप  को बचपन में ही ढाल तलवार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा क्योंकि उनके पिता उन्हें अपनी तरह कुशल योद्धा बनाना चाहते थे। बालक प्रताप ने कम उम्र में ही अपने अदम्य साहस का परिचय दे दिया था। धीरे धीरे समय बीतता गया। दिन महीनों में और महीने सालों में परिवर्तित होते गये। इसी बीच प्रताप अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुण हो गये। जब महाराणा प्रताप (महाराणा प्रताप की कहानी) को अपने पिता के सिंहासन पर बैठाया गया, तो उनके भाई जगमाल सिंह, ने बदला लेने के लिए मुगल सेना में शामिल हो कर बगावत कर दिया। मुगल राजा अकबर ने उसके द्वारा प्रदान की गई जानकारी और सहायता के कारण उसे जहज़पुर शहर की सल्तनत पुरस्कार के रूप में दिया। जब राजपूतों ने चित्तौड़ को छोड़ दिया, तो मुगलों ने जगह पर नियंत्रण कर लिया, लेकिन मेवाड़ राज्य को वह अपने अधीन करने के उनके प्रयास असफल रहे। अकबर द्वारा कई दूत भेजे गए थे जिन्होंने एक गठबंधन पर प्रताप के साथ बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन कुछ काम नहीं आया। 1573 में छह दूत संधि करने के लिए अकबर द्वारा भेजे गए लेकिन महाराणा प्रताप  द्वारा सब ठुकरा दिए गए। इन अभियानों में से अंतिम का नेतृत्व अकबर के बहनोई राजा मान सिंह ने किया था। जब शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के प्रयास विफल हो गए, तो अकबर ने अपनी शक्तिशाली मुगल सेना के साथ लड़ने की कोशिश करने का मन बना लिया। 
अकबर की सेना में 80000 सैनिक थे वही महाराणा प्रताप की राजपूत सेना संख्या में सिर्फ 20000 थी। यह युद्ध भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध था। इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध मे न तो कोई विजय हुआ, न ही किसी की पराजय हुई। क्योंकि अकबर की सेना बहुत विशाल थी. उसके सामने 20000 की सेना थी, इसके बाबजूद वो महाराणा प्रताप को बंदी नही बना पाए थे। हार के बाबजूद भी महाराणा प्रताप ने अपना मनोबल कमजोर नहीं होने दिया और आखिरकार अपने खोये हुए क्षेत्रो को पुनः प्राप्त किया।
महाराणा प्रताप की कहानी

यूं तो महारणा प्रताप (महाराणा प्रताप की कहानी) के जीवन ऐसे कई किस्से हैं जो आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं। लेकिन उनमें से ये प्रताप की ये तीन कहानियां बेहद प्रसिद्ध हैं -
1. भाग खड़ी हुई अकबर की सेना -

महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ के किले में हुआ था। ये किला दुनिया की सबसे पुरानी पहाड़ियों की रेंज अरावली की एक पहाड़ी पर है। महाराणा का पालन-पोषण भीलों की कूका जाति ने किया था। भील राणा से बहुत प्यार करते थे। वे ही राणा के आंख-कान थे। जब अकबर की सेना ने कुम्भलगढ़ को घेर लिया तो भीलों ने जमकर लड़ाई की और तीन महीने तक अकबर की सेना को रोके रखा। एक दुर्घटना के चलते किले के पानी का स्त्रोत गन्दा हो गया। जिसके बाद कुछ दिन के लिए महाराणा को किला छोड़ना पड़ा और अकबर की सेना का वहां कब्ज़ा हो गया। लेकिन अकबर की सेना ज्यादा दिन वहां टिक न सकी और फिर से कुम्भलगढ़ पर महाराणा का अधिकार हो गया। 
2. महाराणा प्रताप का हाथी -

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन उनका एक हाथी भी था। उसका नाम था रामप्रसाद। उस हाथी का उल्लेख अल- बदायुनी ने जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ा था उसने अपने एक ग्रन्थ में किया है। वो लिखता है की जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढ़ाई की थी तब उसने दो चीजों को ही बंदी बनाने की मांग की थी एक तो खुद महाराण और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद। वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था। उस हाथी को पकड़ने के लिए अकबर की सेना ने 7 बड़े हाथियों का एक चक्रव्यू बनाया और उन पर 14 महावतों को बिठाया तब कहीं जाके उसे बंदी बना पाये। उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश  कि या गया जहां अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा। रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया। पर उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिन तक मुगलों का न ही दाना खाया और ना ही पानी पीया और वो शहीद हो गया। तब अकबर ने कहा था कि;- जिसके हाथी को मैं मेरे सामने नहीं झुका पाया उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाऊंगा।
3. चेतक का पराक्रम -

हल्दीघाटी के युद्ध में बिना किसी सैनिक के राणा अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो कर पहाड़ की ओर चल पडे़। उनके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने अपना पराक्रम दिखाते हुए रास्ते में एक पहाड़ी बहते हुए नाले को लांघ कर प्रताप को बचाया जिसे मुग़ल सैनिक पार नहीं कर सके। चेतक द्वारा लगायी गयी यह छलांग इतिहास में अमर हो गयी इस छलांग को विश्व इतिहास में नायब माना जाता है। चेतक ने नाला तो लांघ लिया, पर अब उसकी गति धीरे-धीरे कम होती जा रही थी पीछे से मुग़लों के घोड़ों की टापें भी सुनाई पड़ रही थी उसी समय प्रताप को अपनी मातृभाषा में आवाज़ सुनाई पड़ी, ‘नीला घोड़ा रा असवार’ प्रताप ने पीछे पलटकर देखा तो उन्हें एक ही अश्वारोही दिखाई पड़ा और वह था, उनका सगा भाई शक्तिसिंह। प्रताप के साथ व्यक्तिगत मतभेद ने उसे देशद्रोही बनाकर अकबर का सेवक बना दिया था और युद्धस्थल पर वह मुग़ल पक्ष की तरफ़ से लड़ता था। जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ की तरफ़ जाते हुए देखा तो वह भी चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा, परन्तु केवल दोनों मुग़लों को यमलोक पहुंचाने के लिए। जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले थे। इस बीच चेतक इमली के एक पेड़ के पास गिर पड़ा, यहीं से शक्तिसिंह ने प्रताप को अपने घोड़े पर भेजा और वे खुद चेतक के पास रुके रहे। कहते हैं यही चेतक ने अपने प्राण त्याग दिये। चेतक लंगड़ा (खोड़ा) हो गया, इसीलिए पेड़ का नाम भी खोड़ी इमली हो गया। कहते हैं, इमली के पेड़ का यह ठूंठ आज भी हल्दीघाटी में उपस्थित है।
महाराणा प्रताप का युद्ध -

महाराणा प्रताप ने जीवनभर मुगलों  से लड़ाई लड़ी। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भी अगले 10 सालों में मेवाड़ में महाराणा प्रताप ने स्वतंत्रता की लड़ाई जारी रखी। वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध, महाराणा प्रताप और मुगलों के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था। 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के बाद भी अकबर ने महाराणा को पकड़ने या मारने के लिए 1577 से 1582 के बीच करीब एक लाख सैन्यबल भेजे। अंगेजी इतिहासकारों ने लिखा है कि हल्दीघाटी युद्ध (हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास) का दूसरा भाग जिसको उन्होंने 'बैटल ऑफ दिवेर' कहा है, मुगल बादशाह के लिए एक करारी हार सिद्ध हुआ था। हल्दीघाटी के बाद अक्टूबर 1582 में दिवेर का युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुगल सेना की अगुवाई करने वाला अकबर का चाचा सुल्तान खां था। दिवेर के युद्ध के बाद प्रताप ने गोगुंदा, कुम्भलगढ़, बस्सी, चावंड, जावर, मदारिया, मोही, माण्डलगढ़ जैसे महत्वपूर्ण ठिकानों पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद महाराणा प्रताप व मुगलो के बीच एक लम्बा संघर्ष युद्ध के रुप में घटित हुआ, जिसके कारण कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को "मेवाड़ का मैराथन" कहा।
मेवाड़ का इतिहास -

मेवाड़ राजस्थान के दक्षिण-मध्य में स्थित एक रियासत हुआ करती थी। इस समय आधुनिक भारत में उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, तथा चित्तौडगढ़ जिले हैं। सैकड़ों सालों तक यहां राजपूतों का शासन रहा और इस पर गहलौत तथा सिसोदिया राजाओं ने 1200 साल तक राज किया। कहा जाता है मेवाड़ शासकों का राजतिलक भील जाति के सरदार अपने अंगूठे के रक्त से करते थे।  1550 के आसपास मेवाड़ की राजधानी थी चित्तौड़। महाराणा प्रताप सिंह यहीं के राजा थे। चित्तौड़गढ़ 1568 तक मेवाड़ की राजधानी के रूप में देखा गया था उसके बाद उदयपुर को मेवाड़ की राजधानी बना दिया गया। ऐसा माना गया है की इसकी स्थापना सिसोदिया वंश के शासक बप्पा रावल ने की थी। चित्तौड़गढ़ पर कई बार आक्रमण किये गये। जब भी चित्तौड़गढ़ का राजा युद्ध में परास्त हुआ है तब-तब वहां की वीरांगनाओ ने जौहर का रास्ता चुन अपनी आन-बान-शान की रक्षा की है। सबसे पहले जब 1303 अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया था तब राणा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मावती ने युद्ध में अपने पति की जान चली जाने के कारण जौहर किया था। उसके बाद 1537 में रानी कर्णावती ने जौहर किया था। चित्तौड़गढ़ एक ऐसी वीरभूमि है, जो पुरे भारत में शौर्य, बलिदान और देशभक्ति का एक गौरवपूर्ण उदाहरण है। यहां पर अनगिनत राजपूत वीरों ने अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए अपने खून से नहाये हैं।
वीरों की इस भूमि में राजपूतों के छोटे-बड़े अनेक राज्य रहे जिन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया। इन्हीं राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है जिसमें इतिहास के गौरव बप्पा रावल, खुमाण प्रथम महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, उदयसिंह और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया है। अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ के महाराणा प्रताप (महाराणा प्रताप की कहानी) बाधक बना रहे। अकबर ने सन् 1576 से 1586 तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिंह ने मुगल सम्राट जहांगीर से संधि कर ली। इस तरह 100 साल बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का भी अंत हो गया। बाद में यह अंग्रेज़ों द्वारा शासित राज्य भी बना।
हल्दीघाटी का युद्ध - 

हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था। यह हल्दी घाटी में लड़ा गया, इसलिए इसे हल्दीघाटी का युद्व कहते है। इतिहासकारों का मानना है कि यह कोई आम युद्ध नहीं था, बल्कि अकबर और महाराणा के बीच लड़ा गया यह युद्ध महाभारत के युद्ध की तरह विनाशकारी था। 18 जून, 1576 को हल्दीघाटी के मैदान में मुगलों की तरफ से आसफ खान और राजपूतों की तरफ से मान सिंह के नेतृत्व में दोनों सेना आमने-सामने खड़ी हुई।  इस युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे जबकि मुगलों के पास 85000 सैनिक। इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे। हल्दीघाटी की लड़ाई चार घंटे तक चली और इस लड़ाई में मेवाड़ के लगभग 1600 सैनिक मारे गए जबकि मुगलों ने अपने सिर्फ 150 सैनिकों को खो दिया और 350 सैनिक घायल हो गए। महाराणा प्रताप बुरी तरह से घायल हो गए लेकिन भागकर पास की पहाड़ियों में छिप गए। मुगलों ने अरावली को छोड़कर मेवाड़ के कई हिस्सों पर अपना कब्जा कर लिया। लेकिन वो महाराणा प्रताप को पकड़ने में कामयाब नहीं हो सके। उसके बाद जंगलों में रहकर महाराण प्रताप ने अपनी गुरिल्ला रणनीति के माध्यम से मुगलों को परेशान करना जारी रखा। 
जंगलों में रहने के दौरान उनके पास खाने के लिए कुछ नही था तो वो घांस की रोटियां खाया करते थे। वो हर विषम परिस्थितियों को झेलते हुए अपनी सेना तैयार करते रहे। जब कुछ समय बाद अकबर का ध्यान चित्तौड़ से हट गया और वो लाहौर की तरफ बढ़ गया क्योंकि उसे अपने उत्तर-पश्चिम वाले क्षेत्र पर भी नजर रखना था। इसी का फायदा उठाकर महाराणा प्रताप ने पश्चिमी मेवाड़ पर अपना कब्जा कर लिया जिसमें कुंभलगढ़, उदयपुर और गोकुंडा आदि शामिल थे और उन्होंने चवण को अपनी नई राजधानी बनाई। ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी। दोनों ओर से बराबरी की टक्कर के चलते युद्ध का कोई परिणाम हासिल ना हो सका था।

चेतक की वीरता -

जब-जब महाराणा प्रताप का नाम लिया जाता है तब-तब उनके प्रिय घोड़े चेतक का नाम भी लिया जाता है। आज भी मेवाड़ में कहा जाता है कि 'बाज नहीं, खगराज नहीं, पर आसमान में उड़ता था। इसीलिए नाम पड़ा चेतक।' स्वामिभक्ति ऐसी कि दुनिया में वह सर्वश्रेष्ठ अश्व माना गया। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक इतना शौर्यवान था कि दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए उसके सिर पर हाथी की सूंड लगाई जाती थी। महाराणा प्रताप का प्रसिद्ध नीलवर्ण घोड़ा चेतक उनका अत्यंत प्रिय घोड़ा था। उसके चर्चे पूरे देश में थे। दरअसल, महाराणा प्रताप के पास एक अरब व्यापारी अरबी नस्ल के तीन घोड़े लेकर आया था, जिनके नाम चेतक, त्राटक एवं अटक थे। प्रताप ने घोड़ो का परिक्षण किया जिसमे चेतक और त्राटक सफल हुए। लेकिन महाराणा ने चेतक को अपने पास रख लिया और त्राटक को छोटे भाई शक्ति सिंह को दे दिया। 
चेतक ने हल्दीघाटी (1576) के युद्ध में अपने शौर्य और पराक्रम द्वारा अपने स्वामिभक्त होने का परिचय दिया था। उस युद्ध मे अकबर की न तो जीत हुई न ही महाराणा प्रताप की हार हुई। लेकिन युद्ध के दौरान प्रताप घायल हो गए थे और मुगल उन्हें बंदी बनाना चाहते थे। लेकिन चेतक ने बहादुरी दिखाते हुए अपने स्वामी महाराणा प्रताप  को वहां से निकाल 26 फिट का एक दरिया पार कर अंत में वीरगति को प्राप्त हो गया। युद्ध के स्थान पर हल्दीघाटी में आज भी चेतक की समाधि बनी हुई है, जहां महाराणा प्रताप ने छोटे भाई शक्ति सिंह के साथ में चेतक का दाह-संस्कार किया था। चेतक के नाम पर एक मंदिर भी बना है। हल्दीघाटी काव्य में श्याम नारायण पांडेय ने महाराणा प्रताप  प्राण प्रिय घोड़े चेतक को लेकर भी कुछ पंक्तियां लिखीं हैं जो कुछ इस प्रकार है -
''चें तक अरि ने बोल दिया, चेतक के भीषण वारों से। कभी न डरता था दुश्मन की लहू भरी तलवारों से। चेत करो, अब चेत करो, चेतक की टाप सुनाई दी। भागो, भागो, भाग चलो, भाले की नोंक दिखाई दी। चेतक क्या बड़वानल है वह, उर की आग जला दी है। विजय उसी के साथ रहेगी, ऐसी बात चला दी है।''
महाराणा प्रताप का भाला - 

सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे, जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे। उस समय के जानकार बताते हैं कि स्वयं प्रताप का वजन 110 किलो और कद 7 फीट 5 इंच थी। वो बेहद फुर्तिले और सहासी थे। महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। इतने भार को लेकर वह चेतक पर हवा की गति से रण भूमि में चलते थे। महाराणा प्रताप के हथियार इतिहास के सबसे भारी युद्ध हथियारों में शामिल हैं। महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान आज भी उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
महाराणा प्रताप की जीवनी -

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईसा पूर्व राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। उनके पिता महाराजा उदयसिंह और माता राणी जीवत कंवर थीं। वे राणा सांगा के पौत्र थे। महाराणा प्रताप को बचपन में सभी 'कीका' नाम लेकर पुकारा करते थे। पिता उदयसिंह की मृत्यु के बाद राजपूत सरदारों ने मिलकर साल 1576 को महाराणा प्रताप (महाराणा प्रताप की कहानी) को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया। मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने कई प्रयास किए। अकबर चाहता था कि महाराणा प्रताप अन्य राजाओं की तरह उसके कदमों में झुक जाए। महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियां की थीं। कहा जाता है कि उन्होंने ये सभी शादियां राजनैतिक कारणों से की थीं। महाराणा प्रताप के 17 बेटे और 5 बेटियां थीं। महारानी अजबदे (महाराणा प्रताप की पत्नी का नाम) से पैदा हुए अमर सिंह उनके उत्तराधिकारी बने। नीचे दिये गये चार्ट के माध्यम से जाने महाराणा प्रताप का जीवन परिचय -

 नाम महाराणा प्रताप
 उपनाम प्रताप सिंह
 धर्म हिन्दू
 जन्मतिथि 9 मई 1540
 जन्म स्थान कुम्भलगढ़ दुर्ग  राजस्थान, भारत
 पिता उदय सिंह
 माता महारानी जयवंताबाई
 पत्नी महारानी अजबदे पंवार
 उत्ताधिकारी अमर सिंह प्रथम
 मृत्यु 19 जनवरी 1597 (उम्र 56)
 शासन काल 1568-1597

महाराणा प्रताप के अनमोल विचार - 

महाराणा प्रताप अकेले ऐसे राजपूत राजा थे जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ़ता के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने अपने कार्यों और विचारों से लोगों में हमेशा उत्साह, स्वाभिमान, रक्षक और देशप्रेम की भावना जागृत की। पढ़िए ऐसे वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप के अनमोल विचार जिन्हें आप अपने जीवन में शामिल कर खुद को निर्भय होकर परेशानियों का सामना करने में सक्षम बना सकते हैं -
- ये संसार कर्मवीरो की ही सुनता है। अतः अपने कर्म के मार्ग पर अडिग और प्रशस्त रहो। - महाराणा प्रताप
- जो अत्यंत विकट परिस्तिथत मे भी झुक कर हार नही मानते। वो हार कर भी जीते होते है। - महाराणा प्रताप
- अपने और अपने परिवार के अलावा जो अपने राष्ट्र के बारे में सोचे वही सच्चा नागरिक होता है। - महाराणा प्रताप
- मातृभूमि और अपने मां मे तुलना करना और अंतर समझना निर्बल और मुर्खो का काम है। - महाराणा प्रताप
- तब तक परिश्रम करते रहो जब तक तुम्हे तुम्हारी मंजिल न मिल जाये। - महाराणा प्रताप
- अगर इरादा नेक और मजबूत है तो मनुष्य कि पराजय नहीं विजय ही होती है। - महाराणा प्रताप
- जो सुख मे अतिप्रसन्न और विपत्ति मे डर के झुक जाते है, उन्हें ना सफलता मिलती है और न ही इतिहास में जगह। - महाराणा प्रताप
- अपनी कीमती जीवन को सुख और आराम कि जिन्दगी बनाकर कर नष्ट करने से बढ़िया है कि अपने राष्ट्र कि सेवा करो। - महाराणा प्रताप
- अगर सर्प से प्रेम रखोगे तो भी वो अपने स्वभाव के अनुसार डसेगा ही। - महाराणा प्रताप
- अन्याय, अधर्म,आदि का विनाश करना पूरे मानव जाति का कतर्व्य है। - महाराणा प्रताप
- समय इतना बलवान होता है, कि एक राजा को भी घास की रोटी खिला सकता है।  -  महाराणा प्रताप
- सम्मानहीन मनुष्य एक मृत व्यक्ति के ही समान होता है।  - महाराणा प्रताप
- शत्रु सफल और शौर्यवान व्यक्तित्व के ही होते है। - महाराणा प्रताप
- अपने अच्छे समय में अपने कर्म से इतने विश्वास पात्र बना लो कि बुरा वक्त आने पर वो उसे भी अच्छा बना दें … - महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप से जुड़े सवाल-जवाब 

महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई?

मेवाड़ पर लगा हुआ अकबर ग्रहण का अंत 1585 ई. में हुआ। उसके बाद महाराणा प्रताप उनके राज्य की सुख-सुविधा में जुट गए,परंतु दुर्भाग्य से उसके ग्यारह वर्ष के बाद ही 19 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड में उनकी मृत्यु हो गई। ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है कि उनकी मृत्यु कैसे हुई थी। लेकिन जानकारों का कहना है कि वो शिकार करते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गये थे और जिससे उनकी मौत हो गई।
वर्तमान में महाराणा प्रताप के वंशज कौन हैं और कहां रहते हैं?
वर्तमान में श्री अरविंद सिंह मेवाड़ और महाराणा महेंद्र सिंह इस वंश के उत्तराधिकारी है। सांकेतिक रूप से वे महाराणा है। उदयपुर के महाराणाओं को श्री एकलिंगजी की ओर से शासक नहीं बल्कि राज्य का संरक्षक माना जाता है। महराणा प्रताप के वंशज आज भी उदयपुर में रहते है। उनका सिसोदिया वंश उदयपुर में सिटी पैलेस में रहता है।
महाराणा प्रताप की जयंती की दो तारीखें क्यों हैं?
महाराणा प्रताप  का जन्म अंग्रेजी वर्ष के अनुसार 9 मई 1540 को हुआ था ,उस दिन हिन्दू वर्ष के अनुसार ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि थी ,इसलिए कुछ लोग अंग्रेजी वर्ष के आधार पर 9 मई को मनाते है। लेकिन राजपूत समाज उनका जन्मदिवस पंचाग तिथि के अनुसार मनाता है। जोकि साल 2021 में 25 मई को है। इसीलिए उनकी जयंती की दो तारीखें हैं।
महाराणा प्रताप के घोड़े का क्या नाम था ?
महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम 'चेतक' था। वो उनके सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण ईरानी मूल का घोड़ा था।

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