Thursday, May 13, 2021

ईद-उल-फितर : मोहब्बत‍ और इंसानियत का पैगाम देता है ईद का त्योहार



ईद-उल-फितर : मोहब्बत‍ और इंसानियत का पैगाम देता है ईद का त्योहार

ईद-उल-फितर भूख-प्यास सहन करके एक महीने तक सिर्फ खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है। सेवइयां में लिपटी मोहब्बत की मिठास इस त्योहार की खूबी है। मुसलमानों का सबसे बड़ा त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व न सिर्फ हमारे समाज को जोड़ने का मजबूत सूत्र है, बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्दभरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाता है।मीठी ईद भी कहा जाने वाला यह पर्व खासतौर पर भारतीय समाज के ताने-बाने और उसकी भाईचारे की सदियों पुरानी परंपरा का वाहक है। इस दिन विभिन्न धर्मों के लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं और सेवइयां अमूमन उनकी तल्खी की कड़वाहट को मिठास में बदल देती है।

 

ईद-उल-फितर एक रूहानी महीने में कड़ी आजमाइश के बाद रोजेदार को अल्लाह की तरफ से मिलने वाला रूहानी इनाम है। ईद समाजी तालमेल और मोहब्बत का मजबूत धागा है,
यह त्योहार इस्लाम धर्म की परंपराओं का आईना है। एक रोजेदार के लिए इसकी अहमियत का अंदाजा अल्लाह के प्रति उसकी कृतज्ञता से लगाया जा सकता है।

दुनिया में चांद देखकर रोजा रहने और चांद देखकर ईद मनाने की पुरानी परंपरा है और आज के हाईटेक युग में तमाम बहस-मुबाहिसे के बावजूद यह रिवाज कायम है। व्यापक रूप से देखा जाए तो रमजान और उसके बाद ईद व्यक्ति को एक इंसान के रूप में सामाजिक जिम्मेदारियों को अनिवार्य रूप से निभाने का दायित्व भी सौंपती है।

 

रमजान में हर सक्षम मुसलमान को अपनी कुल संपत्ति के ढाई प्रतिशत हिस्से के बराबर की रकम निकालकर उसे गरीबों में बांटना होता है। इससे समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी का निर्वहन तो होता ही है, साथ ही गरीब रोजेदार भी अल्लाह के इनामरूपी त्योहार को मना पाते हैं। व्यापक रूप से देखें तो ईद की वजह से समाज के लगभग हर वर्ग को किसी
न किसी तरह से फायदा होता है। चाहे वह वित्तीय लाभ हो या फिर सामाजिक फायदा हो।

ईद की मुबारकबाद देने से पहले जा‍न लीजिए ईद के दिन की सुन्नतें..

कुरआन के अनुसार पैगंबरे इस्लाम ने कहा है कि जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोजों-नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं तो अल्लाह एक दिन अपने उक्त इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है। इसलिए इस दिन को 'ईद' कहते हैं और इसी बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल-फितर का नाम देते हैं।

 

रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही 10वां माह शव्वाल शुरू होता है। इस माह की पहली चांद रात ईद की चांद रात होती है। इस रात का इंतजार वर्षभर खास वजह से होता है, क्योंकि इस रात को दिखने वाले चांद से ही इस्लाम के बड़े त्योहार ईद-उल-फितर का ऐलान होता है।

इस तरह से यह चांद ईद का पैगाम लेकर आता है। इस चांद रात को 'अल्फा' कहा जाता है। जमाना चाहे जितना बदल जाए, लेकिन ईद जैसा त्योहार हम सभी को अपनी जड़ों की तरफ वापस खींच लाता है और यह अहसास कराता है कि पूरी मानव जाति एक है और इंसानियत ही उसका मजहब है।

 

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