Wednesday, April 17, 2019

भगवान महावीर के बारे मे जरूर पढे...? आनंद की खोज ...? मार्गदर्शन के लिए एक मात्र....?

भगवान महावीर के बारे मे कहा जाता है कि जैसे पर्वतो मे हिमालय नदियों मे गंगा उसी तरह इंसानों मे भगवान महावीर ..
दिया जले अगम का बिन बाती बिन तेल
आपने जीवन के उस रहस्य की खोज मे जीवन के अधिक तम समय को लगा दिया और अब उस रहस्य को पाकर आपने उस चावी को बताया जिससे  आज भी वैज्ञानिक कोसो दूर है।आप की इस खोज से एक बहुत बडा वर्ग रुपांतरित हुवा।आपकी इस आध्यात्मिक खोज की महिमा मानवजाति को एक अलग ऊंचाई उर्जा के केन्द्र से लेकर मोक्ष तक के मार्ग को आसान बनाती है।
जिसे मानव का इतिहास बदलने मन आध्यात्मिक गतिविधियों को एकदम आसानी से
समझ सकते है।
*महावीर स्वामी का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले हुआ था । ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को वर्धमान का जन्म हुआ । यही वर्धमान बाद में इस काल के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी बने ।*

*जैन ग्रंथों के अनुसार, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त हो जाने के 278 वर्ष बाद इनका जन्म हुआ था । महावीर को 'वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है।*

तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे । उनका जीवन त्याग और #तपस्या से ओतप्रोत था । उन्होंने एक लंगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा । हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ । उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया ।*

*महावीर जी ने अपने उपदेशों और प्रवचनों के माध्यम से दुनिया को सहीं राह दिखाकर मार्गदर्शन किया ।*

*भगवान महावीर, ऋषभदेव से प्रारंभ हुई वर्तमान चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे।*
*प्रभु महावीर प्रारंभिक तीस वर्ष राजसी वैभव एवं विलास के दलदल में 'कमल' के समान रहे ।*

मध्य के बारह वर्ष घनघोर जंगल में मंगल साधना और आत्म जागृति की आराधना की जिसमें दुष्टों ने इन्हें कई यातनाएं दी । कान में खीले ठोके फिर भी महावीर साधना में लगे रहे । बाद के तीस वर्ष उन्होंने न केवल जैन जगत या मानव समुदाय के लिए अपितु प्राणी मात्र के कल्याण एवं मुक्ति मार्ग की प्रशस्ति में व्यतीत किये ।*

*जनकल्याण हेतु उन्होंने चार तीर्थों साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका की रचना की । इन सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थी । भगवान महावीर का आत्मधर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं के लिए पसंद हो। यही महावीर का 'जियो और जीने दो' का सिद्धांत है।*

*इतने वर्षों के बाद आज भी भगवान महावीर का नाम स्मरण बड़ी श्रद्धा और भक्ति से लिया जाता है, इसका मूल कारण यह है कि महावीर जी ने इस जगत को न केवल #मुक्ति का संदेश दिया, अपितु मुक्ति की सरल और सच्ची राह भी बताई। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु पाँच सिद्धांत हमें बताए : सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य।*

*वर्तमान में अशांत, आतंकी, भ्रष्ट और हिंसक वातावरण में महावीर जी की अहिंसा ही शांति प्रदान कर सकती है । महावीर जी की अहिंसा केवल सीधे वध को ही हिंसा नहीं मानती है, अपितु मन में किसी के प्रति बुरा विचार भी हिंसा है । जब मानव का मन ही साफ नहीं होगा तो अहिंसा को स्थान ही कहाँ...???*

वर्तमान युग में प्रचलित नारा 'समाजवाद' तब तक सार्थक नहीं होगा जब तक आर्थिक विषमता रहेगी ।* *एक ओर अथाह पैसा, दूसरी ओर अभाव ।

*इस असमानता की खाई को केवल भगवान महावीर का 'अपरिग्रह' का सिद्धांत ही भर सकता है । अपरिग्रह का सिद्धांत कम साधनों में अधिक संतुष्टि पर बल देता है । यह आवश्यकता से ज्यादा रखने की सहमति नहीं देता है । इसलिए सबको मिलेगा और भरपूर मिलेगा ।*

*जब अचौर्य की भावना का प्रचार-प्रसार और पालन होगा तो चोरी, लूटमार का भय ही नहीं होगा । सारे जगत में मानसिक और आर्थिक शांति स्थापित होगी । चरित्र और संस्कार के अभाव में सरल, सादगीपूर्ण एवं गरिमामय जीवन जीना दूभर होगा। भगवान महावीर ने हमें अमृत कलश ही नहीं, उसके रसपान का मार्ग भी बताया है ।*

*सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं...*
*हे पुरुष ! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ । जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।

अहिंसा - इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रिय वाले जीव) आदि है उनकी हिंसा मत करों , उनको उनके पथ पर जाने से न रोको । उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो । उनकी रक्षा करो । यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं ।*

*अपरिग्रह - परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सका । यही संदेश अपरिग्रह के माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं ।

*ब्रह्मचर्य - महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चरित्र, संयम और विनय की जड़ है । तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है । जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं ।*

*क्षमा - क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ । जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है । मेरा किसी से वैर नहीं है । मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ । सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा माँगता हूँ । सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ ।'*

*वे यह भी कहते हैं 'मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पाप वृत्तियाँ प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियाँ की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियाँ विफल हों  मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।'*

*धर्म - धर्म सबसे उत्तम मंगल है । अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है । महावीरजी कहते हैं जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं ।*

*भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया । त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था । भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की । देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया ।*

* जैसे हर संत के जीवन में देखा जाता है, वैसे महावीर स्वामी के समय भी जहाँ उनसे लाभान्वित होनेवाले लोग थे, वहीं समाजकंटक निंदक भी थे ।

उनमें से पुरंदर नाम का निंदक बड़े ही क्रूर स्वभाव का था । वह तो महावीरजी के मानो पीछे ही पड़ गया था । उसने कई बार महावीर स्वामी को सताया, उनका अपमान किया पर संत ने उसे माफ कर दिया । एक दिन महावीर स्वामी पेड़ के नीचे ध्यानस्थ बैठे थे । तभी घूमते हुए पुरंदर भी वहाँ पहुँच गया । वह महावीरजी को ध्यानस्थ देख आग-बबूला होकर बड़बड़ाने लगा : ‘‘अभी इनका ढोंग उतारता हूँ ।*

अभी मजा चखाता हूँ...’’ और आवेश में आकर उसने एक लकड़ी ली और उनके कान में खोंप दी । कान से रक्त की धार बह चली लेकिन महावीरजी के चेहरे पर पीड़ा का कोई चिह्न न देखकर वह और चिढ़ गया, और कष्ट देने लगा । इतना सब होने पर भी महावीरजी किसी प्रकार की कोई पीड़ा को व्यक्त किये बिना शांत ही बैठे रहे । परंतु कुछ समय बाद अचानक उनका ध्यान टूटा, उन्होंने आँख खोलकर देखा तो सामने पुरंदर खड़ा है । उनकी आँखों से आँसू झरने लगे ।
पुरंदर ने पूछा : ‘‘क्या पीड़ा के कारण रो रहे हो ?’’*

*महावीर स्वामी : ‘‘नहीं, शरीर की पीड़ा के कारण नहीं ।’’*

*पुरंदर : ‘‘तो किस कारण रो रहे हो ?’’*

*‘‘मेरे मन में यह व्यथा हो रही है कि मैं निर्दोष हूँ फिर भी तुमने मुझे सताया है तो तुम्हें कितना कष्ट सहना पड़ेगा ! कैसी भयंकर पीड़ा सहनी पड़ेगी ! तुम्हारी उस पीड़ा की कल्पना करके मुझे दुःख हो रहा है ।’’
*यह सुन पुरंदर मूक हो गया और पीड़ा की कल्पना से सिहर उठा ।

पुरंदर की नाईं गौशालक नामक एक कृतघ्न गद्दार ने भी महावीर स्वामी को बहुत सताया था । महावीरजी के 500 शिष्यों को उनके खिलाफ खड़ा करने का उसका षड्यंत्र भी सफल हो गया था । उस दुष्ट ने महावीर स्वामीजी को जान से मारने तक का प्रयत्न किया लेकिन जो जैसा बोता है उसे वैसा ही मिलता है । धोखेबाज लोगों की जो गति होती है, गौशालक का भी वही हाल हुआ ।

गौशालक के साथ पाँच सौ निंदक मिल गये  । वे कौन-से नरक में सड़ते होंगे पता नहीं है, लेकिन महावीर को तो लाखों-करोड़ो लोग आज भी मानते हैं  ।

भगवान महावीर ने ईसापूर्व 527, 72 वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया ।

*समाज का दुर्भाग्य रहा है कि जब महापुरुष हयात होते हैं तब झूठे आरोप लगाते हैं, निंदा करते हैं, कष्ट देते हैं, आदर नही करते, उनके जाने के बाद अनेकों मंदिर बनवाकर उनकी पूजा करते हैं ।*

संत निंदको व कुप्रचारकों ! अब भी समय है, कर्म करने में सावधान हो जाओ । अन्यथा जब प्रकृति तुम्हारे कुकर्मों की तुम्हें सजा देगी उस समय तुम्हारी वेदना पर रोनेवाला भी कोई न मिलेगा ।

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