सुप्रीम कोर्ट के हुक्म के बावजूद धडल्ले से बिक रही हैं प्रतिबंधित दवाएं - RTI
नवसारी जिले में हिंमतनगर के अधिकारी को चार्ज
नौकरी तानाशाही अथवा ...?
मानव जीवन का मूल्य गांधी दर्शन के सामने ..?
आज जब सुप्रीम कोर्ट ने 329 से अधिक दवाओं को मानव जीवन को खतरा बताते हुए तुरंत बेन लगाकर उपयोग करने और तत्काल बिक्री पर बंद करने हुक्म पिछले वर्ष ही कर चुकी है। फिर भी नवसारी जिले में धडल्ले से जानलेवा प्रतिबंधित दवाएं खुल्लेआम बिक रही है। और ड्रग अधिकारी कुंभ निद्रावस्था में हैं। आज जिनके ऊपर सरकार ने बिश्वास किया। आज वही मोत के सौदागर बन गये। इन प्रतिबंधित दवाओं के उपयोग से मानव शरीर में क्या दुष्प्रभाव पड़ रहा होगा? इसे आधुनिक वैज्ञानिको ने क्यों बंद करने पर जोर दिया होगा ?
नवसारी जिले में खोराक एवम औषध नियंत्रण के अधिकारियों का मोबाइल बंध और समयसर उपस्थित क्यों नही है?
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों बेन लगाया होगा?लोक चर्चा के मुताबिक इसकी जानकारी इन मौत के सौदागरों को क्यो नही है ? इसके पीछे का रहस्य आज सभी को पता है। परंतु क्या इसे हलके में लेना उचित होगा ? सभी विद्वानों का एक ही मंतव्य नही में ही मिला है। जिसकी विस्तृत जानकारी के लिए और मिल रही फरियादो के अनुसार पर्यावरण मानव अधिकार संस्था के गुजरात प्रदेश अध्यक्ष के द्वारा एक सूचना खोराक औषध नियमन तंत्र के मददनीश कमिश्नर नवसारी जिनकी पूरी जिम्मेदारी होती है। उन्ही से मागी गई। मिली सूचना के अनुसार नवसारी जिले में मददनीश कमिश्नर श्री नवसारी जिले के आसपास ही नही हिंमतनगर में रहते हैं। सरकार के नियमानुसार किसी भी जिले में यदि कभी कभार कोई जगह खाली होती है फिर सिर्फ कुछ समय के लिए उसी जिले के समकक्ष अधिकारी को ही चार्ज दिया जाता है अथवा उस जिले से नजदीक के जिले के अधिकारियों को ही दिया जा सकता है। नवसारी जिले में क्या इनके समकक्ष अधिकारी नही हैं? एक फार्मासिस्ट जैसी सामान्य शैक्षणिक लायकात अधिकारी नवसारी में नही हैं? नवसारी जिले के आसपास के जिलो में भी नही है? जानकारो और विद्वानों के अनुसार यहां जमकर डकैती और हफ्ता वसूली की जाती है। और इस विभाग में कायदेसर माफिया राज चल रहा है। और इसका सीधा असर यह हो रहा है कि यह नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ ही नही मौत के सौदागर बनकर दिन दहाडे डकैती डाली जा रही है। और इनका पर्दाफाश जब जब होने के कगार पर पहले जल्दी आता नही और यदि किसी ने कोशिश भी की फिर उसे पहले खरीदने की कोशिश करते हैं। अथवा किसी भी प्रकार से झूठे मुकदमे में फसवाकर अलग कर दिया जाता है। शायद यहां इन इमानदार अधिकारियों को पता नही कि यह महात्मा गांधी सरदार पटेल भगवान बुद्ध और महावीर भगवान राम कृष्ण का देश है।
सुचना के अधिकार (आरटीआई) से मिली सूचना के अनुसार नवसारी जिले में औषध नियमन तंत्र के कमिश्नर श्री जिन्हे सरकार ने पूरी फोज के साथ सभी प्रकार की सुविधाओं से लसालस किया है। उस कार्यालय को आज मौज मस्ती के पिकनिक मनाने का अड्डा समझ बैठे हैं। मिली सूचना के अनुसार अभी तक जाबांज अनुभवी अपने आपको सुप्रीम कोर्ट से भी महान समझने वाले मददनीश कमिश्नर श्री इन जानलेवा दवाओं को बंद करने में कोई दिलचस्पी नही रखते । हजारों की संख्या में चल रही इन मौत के दवाओं के बिक्री करने वालो में अभी तक चंद दुकानों में देखकर आ गये। इन जान लेवा दवाओं को तुरंत नष्ट करने और आइ पी सी धाराओं के तहत सरकारी सेवालयों मे ले जाने के बजाय खुद ही सेवा लेकर आ गये। एक सामान्य गाली गलोज तक करने वालो को आइपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत जेल तक जाना पड़ता है। और सीधे सीधे जानलेवा दवाओं को सुप्रीम कोर्ट के बेन लगाने के बावजूद बेचने के और बंद न करवाने वाले अधिकारी पर कोई कार्यवाही नही।पर्यावरण मानवाधिकार संस्था के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा पूछे गये सवालो के सामने सुप्रीम कोर्ट के हुक्म पर सवाल उठा बैठे। शायद अभी भी चुनावो के दौरान नेताओं का लेक्चर इनके दिमाग में अभी तक छाया हुवा है। नेताओं की तरह प्रबचन दे बैठे।इन महाशय के मुताबिक
आज इन सभी दवाएं जो मोत का कारण बनी हुई हैं। ऐसी दवाओं को बजार से दूर करवाने का सुप्रीम कोर्ट का हुक्म जारी न कर पाने के पीछे दवा बिक्रेताओं का नुकसान के सामने नागरिकों की जान की कीमत कुछ भी नही है। जानकारों और विद्वानों के मंतव्यों से मिली जानकारी लिखने में यहाँ शब्द ही नही है। शब्दों की गरिमा शर्मसार होने की वजह से उसको लिखा नही जा सकता। उसे समझा जा सकता है। उसे अनुभव किया जा सकता है। इन जानलेवा दवाओं के दुष्प्रभाव से जो दर्द जो पीडा़ जो तकलीफ आज हमारे बीमारियों से पीडित नागरिकों को हो रही है। और चिकित्सक असहाय नजर दिख रहा है। और अंत में जब वह अंतिम श्वास इस लिए लेने में मजबूर हो रहा है। उसे और चिकित्सा व्यवसाय में भिड़े चिकित्सको भी पता नही कि अनजाने में ऐसी जानलेवा दवाओं का प्रयोग करवाया गया है। जिसे एक डाक्टर ने अति आधुनिक खोज समझकर उसे बीमारियों से मुक्ति के लिए दिये थे। और वह जब जानलेवा सावित हो चुकी है। सरकार के इस विभाग चिकित्सा क्षेत्र के सभी एलोपैथी चिकित्सको को इसकी जानकारी उपलब्ध करवानी चाहिए। और उसके लिए तत्काल इन दवाओं को अपना दुष्प्रभाव शरीर में डाल रही हैं।उसे नष्ट करना चाहिए। और सुप्रीम कोर्ट ने हुक्म भी कर दिया। फिरभी आज इसका प्रयोग करवाया जा रहा है। इसकी जांच कर तुरंत दुकानों से बाहर करने वाले अधिकारी गण ही तर्क कुतर्कों से क्या साबित करना चाहते हैं,? इसे समझने से समय व्यतीत करने से मिले फायदो को समझने और समझाने से जो आज हो रहा है। उसे किसी भी कीमत पर माफ करना भी गुनाह होगा। जिसके लिए इस समाचार को पढ़ रहे हमारे पाठक मित्रों से गुजारिश है कि यदि आप इस मुहिम में जिसे आज हमारे पूरी दुनियां के वैज्ञानिको ने सिद्ध कर दिया है। और अंत में हमारे सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूरी जांच पड़ताल में गलत पाया और 350 से अधिक दवाओं की सूची जारी करते हुए प्रतिबंधित कर दिया है। आप सभी पाठक मित्र इसे अपने अपने तरीके से सोचे और इस जानलेवा दवाओं से अपने स्वजनो मित्रों परिवार धर्म देश से मुक्ति दिलवाने में मदद करें।
भारत देश पहले अंग्रेजों का गुलाम था अब अंग्रेजी दवाओं का।
आज हमारे ऋषि मुनियों ने सभी धर्म शास्त्रों तक में असाध्य से असाध्य बीमारियों को जड़ से खत्म करने के लिए लाखो उपाय बताये हैं। प्रकृति तक ने उसका भंडार बिना किसी कीमत के हमें उपलब्ध करवाया है। यहाँ तक कि हमारे देश में इतनी किस्म की मिट्टी है जिसके प्रयोग से हजारों रोग गायब हो जाते हैं। हमारे देश में जल चिकित्सा से भी बीमारी खत्म होती है। हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस नैसर्गिक उपचार पद्धति पर इतना जोर दिया है जितना किसी और पर नहीं। परंतु आज हमारे इस बापु के देश में ऋषि मुनियों संत महात्माओं की धरती पर ऐसे मौत के सौदागर जम कर जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। और गांधी बापु का पल पल नाम लेने वाले बापु की फोटो अपने कार्यालयों लगाकर नमन करने वाले उनके सिद्धांतो पर अमल करने के बजाय उनकी एक अलग चित्र को एकत्रित करने में अधिकांस लगते दिख रहे हैं। आज यदि हमारे देश को मनुष्य जाति को मजबूत बनाना है। समृद्ध और संपन्न देश बनाना है । फिर इस स्वदेशी अपनी मूल पद्धति को कम से कम अतिशीघ्र जोड़ना जरूरी होगा। और जिन दवाओं को प्रतिबंधित कर दिया है। उसके साथ इन अधिकारियों को जो आज सरकार और हमारे सर्वश्रेष्ठ सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न मानकर मौत के सौदागर बने हैं। उन्हें उनके असली स्थान पर पहुंचे इसमें भी मदद करनी चाहिए। इस समाचार को अब किसी एक पर दोषारोपण करना जरूरी नही होगा। यह आज सभी की जवाबदेही है।
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