Tuesday, September 17, 2019

ध्यान बिना सब सूना....।क्या आप आनंद को प्राप्त करना चाहते है..?


ध्यान और आनंद के बीच रहस्य 

          आज हम जीवन के कुछ रहष्यो की चर्चा करें। जीवन में आज दुःख बहुत ही है। आज कोइ व्यक्ति हमें सुखी नहीं दिखाई देता है। क्या आज हमारे जीवन से सुःख गायब होता दिखाई दे रहा है। हम ऐसा सोचते हैं कि वह सुखी है परंतु नजदीक से जब देखा गया पता चला कि वह कुछ अलग ढंग से हमसे ज्यादा दुखी है। आज शायद खुशियां हमारे जीवन ही नही मानव जीवन से दूर हो गई है। और हालत हमारे सभी के जीवन से बद से बदतर नजर आ रही है। कहीँ ऐसा तो नही हम अपने जीवन मे भूल कर रहे हैं। आज हम सभी के जीवन में एक तरफ सुविधाओं का अंबार लगा हुवा है। पहले हमारे मानव जीवन में इतनी सारी सुविधाएं नही थी। आज हमें हिमालय पर जाने की जरूरत नही हैं। आज विज्ञान ने ऐसी खोज बीन कर दिया है कि हिमालय का पूरा माहोल हम अपने घर में बना सकते हैं। वह हिमालय की ठंडक वह शांति वह संगीत हूबहू हम अपने एक छोटे से कमरे में ला सकते हैं। उस ठंडक को अनुभव कर सकते हैं। हिमालय ही नही प्रकृति की हर छटा हर मौसम पर हम अपना कब्जा कर चुके हैं । सर्दियों में गर्मी और गर्मियों में हम सर्दी का एहसास कर सकते हैं। इस हिसाब से यदि देखा जाय तब हम सभी आज ऐसे आधुनिक वैज्ञानिक यूग में जी रहे हैं जहाँ सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं। और हम सभी को आनंद पूर्वक जीवन होना चाहिए। परंतु ऐसा नही है। हमारा जीवन आज पहले की अपेक्षा ज्यादा दीन हीन दिखाई दे रहा है। आज भी यदि सुदूर किसी ग्रामीण इलाके में जहां आज भी प्राथमिक सुविधाओ का अभाव है वहां आज भी शहेरी इलाकों की तुलना में लोगों में शांति और आनंद ज्यादा दिखाई देता है। इसे ऐसा न समझे कि हम गांव में रहने का आपको कोइ सुझाव दे रहे हैं। आज हमारी साक्षरता पहले से कई गुना बेहतर है। शायद यह भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। आज सभी स्कूल युनिवर्सिटी बड़े बड़े शिक्षण विद अलग अलग प्रकार के विभाग से हमे शिक्षा दे रहे हैं। अंततः हमारे पूरी पद्धति नौकरशाहों से भर गई। आज हमें मालिकाना हक जिसका हमारा स्वयं सिद्ध अधिकार है। उसे तो हम सभी जैसे इस सदियो से भूल गये। नौकरशाहो की जमात लग गई। आज बुद्ध महावीर कृष्ण मोहम्मद नानक जीसस जैसे महान बादशाहों की बात अलग मीरा कबीर तुलसी रैदास सूरदास रहीमदास सहजो जैसे कवी भक्त भी हमारी दुनिया से जैसे अदृश्य हो गये। अब इनका बनने का हम जैसे माहोल से अलग कर दिया। आज यह घटनाएं जो हमारे मानव जीवन में घटी यदि ध्यान से देखा जाये तब एक मालकियत के किसी कोने में यह सभी बादशाह थे। और आज मालिकियत हमारे जीवन से जैसे कही मृगमरीचिका हो गई।आइये हम आपको उस आनंद सुःखी रहने के बारे में इस जीवन के अद्भुत रहष्यो के बारे में कुछ चर्चा कर रहे थे। उसकी एक महत्वपूर्ण अंग है मालिकियत। हम आपको यहाँ किसी और के उपर की मालिकियत की नही।अपने आप का मालिक बनने की कह रहे हैं। सबसे पहले हमें अपने आप की अपने विचार शरीर आत्मा को समझना होगा। और ख्याल रहे यह जितना आसान कहने मे पढ़ने और सुनने में लग रहा है। उससे कही ज्यादा कठिन और खतरनाक है। यदि आपको पर्वत पर चढाई अथवा तोड़ने को दिया जाय तब आपके दिमाग में कई सुझाव और तरकीब आयेगी। परंतु यदि सिर्फ एक घंटे शांत रहने को कहा जाये कि शरीर और विचार शांत करकर बैठ जांय फिर यह करीबन कठिन ही नही असंभव लगता है। और यदि इसमें कोई भी कुछ भी असत्य लगे एक बार अजमा कर देखे। हम सभी आज उस कला को जो हमारे संत बुजुर्गों महात्माओं फकीरो में देखी जाती थी वह सब आज जैसे काल्पनिक और फिल्मी हो गई।हकीकत से जैसे हमारा कोई संबंध सदियो से नही है।और आज हम बिक्षुप्त हो गये हैं। हालत यहां तक हो गई है कि आज हम इन पचास वर्षों में उदाहरण के लिए भी यदि चाहे तब भी ढूढना मुश्किल हो रहा है।जिनको हम संत और भगवान की उपाधि अभी दे भी नही पाये उसके पहले ही वे मैदान छोड़ दिये। वै भी किसी की गुलामी करते पकड़े गये। कोई शरीर का कोइ धन का तो कोइ पद का किसी न किसी की नौकरी करते मिले। आइये हम सभी एक वार उस परम सत्ता के बादशाह उस मालिक की खोज में एक वार अवश्य विचार करें जो हमारा स्वयं सिद्ध अधिकार है। और बड़ी खुशी की बात और आश्चर्य की बात यह है कि वह शहंशाह वह मालिक आप खुद ही हो वह आपके भीतर ही है। और इसकी गवाही सभी धर्म शास्त्र स्वयं है। और सभी सिर्फ एक इशारा कर रहे हैं। कि आप स्वयं हो। हमने उस इशारे को ही यदि मंजिल समझ लिया फिर हमारी भूल है। यदि किसी जगह किसी शहर की दूरी किसी पत्थर पर लिखी हो उसका मतलब वह उस शहर उस गांव की और जाने को इशारा ही मात्र है वह मंजिल नही। ठीक यह सभी एक मात्र इशारा है। इनमे बताये मार्ग पर हम चलकर ही अपनी मंजिल पर पहुंच सकते हैं। और हमने सभी बड़ी भूल कर दी क्योंकि हम अक्सर कुछ किये बिना यदि मिले और यदि भूल चूक कर कोइ ऐसे भी मजाक में भी कह दे। हम तुरन्त स्वीकार करने वाले बन जाते हैं। आज तक सभी धर्म शास्त्रों में ज्यादातर नाम मालकियत नही मिली क्योंकि यह किसी माध्यम से मिली। क्या आप के भीतर कोइ जिज्ञासा कोइ कोतुहल कोइ प्यास कोइ जरूरत उस आनंद को पाने की उठ रही है। यदि हां । फिर देर न करें। आज जहाँ है जिस हालत मे हैं। वही से अभी ही शुरुआत करें। उस परम आनंद को पाने की पात्रता सिर्फ और सिर्फ एक गहरी तलब ही है। और यकीन मानिये आप हम सभी का एक मात्र जन्मसिद्ध अधिकार है। और सभी के भीतर वह परमानंद विराजमान है। हमने कभी भी खोया नही है। और हम उसे खो भी नही सकते। हम सिर्फ सदियों की आदत से भूल गये है। और भूलने को खो जाना नही कह सकते। और हम आपको सिर्फ याद ही दिलाना है। कहीं जाने की मित्रों कोइ जरूरत नही है। कहीं कुछ छोडऩे की भी जरूरत नही है। आपको न घर छोड़ना है न व्यापार , न नोकरी छोड़ना है न ही परिवार, न ही आपको अपना नाम बदलना है न ही जाति अथवा धर्म। आपको कुछ छोड़ना भी नही और जाना भी नही। आप जहाँ है जैसे है जिस भी हालत मे है।सभी को वह स्वीकार करने को हर पल तैयार है। बस आपके पास एक गहरी तलब एक मिलने की इच्छा एक संकल्प होना जरूरी है। यदि आप उस परम सत्ता को परम आनंद को दिल से हर हाल में किसी भी कीमत पर पाने की दिल्लगी रखते है। हर हाल में पाये बिना नही रुकेगें। उस परम आनंद के बिना यह जीवन बेकार है। आपकी जितनी गहरी प्यास होगी उतना वह नजदीक होगा। आज हमारे मानव जीवन में जिन्हें हम संत महात्मा भगवान जैसे महान समझ रहे थे। कुछ ही अंतराल के बाद उनका रूप अलग मिला। और हम फिर फस गये। इसके पीछे का रहस्य समझने की कोशिश करें। मेरे देखे से इन सभी का अंतःकरण नही बदला । कोइ भी घटना चाहे अच्छी हो या बुरी ।कभी भी अचानक नही घटती। मनोवैज्ञानिक भी इस बात पर पहुंच चुके हैं कि जो भी आज हमे दिखाई देती है अथवा घटती है वह बहुत पहले से चल रही थी । आज वह परिणाम है। जैसे उदाहरण के लिए एक मकान मंदिर फूल इत्यादि। यह पहले से बन रहा था। अचानक कुछ भी फलित नही होता। एक हत्या भी अचानक नही होती वह पहले से उस व्यक्ति में विद्यमान थी । समय पर घट गई। हम हमेशा परिणाम को ही आचरण मान लेते है।जब तक अंतः करण में बदलाव नही होगा । ऐसा भी समझे जो हमारे अंतश मे चल रहा है एक दिन उसका परिणाम आयेगा। भगवान महावीर कि अंतःकरण बदल गया। कपड़े अपने आप उतर गये। उतारे नही उसकी कोइ जरूरत न रही। अपने आप फिजूल हो गये। और बाहर से खराब दिखे परंतु अंतःकरण शुद्ध और पवित्र था। परिणाम आज सामने है कि महान वैज्ञानिक जीवन के अंतःकरण की चिकित्सा कर डाली। और आज जब हमारे वैज्ञानिक खोज कर रहे है । और उनकी हर वाणी को सत्यापित कर रहे हैं।ठीक उसी तरह 
भगवान राम  बुद्ध कृष्ण मोहम्मद जीसस जैसे महान आत्माओ की हर वाणी लगभग सिद्ध हो रही है। जब तक हमारा अंतःकरण शुद्ध पवित्र नही होगा परिणाम कभी भी शुद्ध नही होगा। कपड़े का कलर और चेहरे पर रंग रोशन करने से कि स्थान बदलने से किसी धार्मिक स्थल पर जाने से अभी तक लगभग परिणाम अच्छे नही पाये गये। क्योंकि जबतक हमारे अंतःकरण मे बदलाव नही आयेगे । फर्क नही आने वाला है। आज जरूरत है अंतःकरण मे बदलाव की। यहां हमारा किसी भी धर्म समाज से नही विरोध है और नही पक्षपात है। हम सिर्फ और सिर्फ़ मानव जीवन में आनंद कैसे मिले। और हम जिस आनंद की चर्चा कर रहे हैं उसके लिए मनुष्य होना ही पर्याप्त है। और सभी उस आनंद को प्राप्त कर सकते हैं।मनुष्य मात्र होना काफी है। यदि आप भी उस आनंद को पाना चाहते हैं। आपका स्वागत है। और इसका एक सरल माध्यम है ध्यान।। यदि आप की प्यास बढ जाय और रास्ते में कोइ तकलीफ हो ।
 आप हमसे संपर्क कर सकते है।
आइये आपका स्वागत है।
 कहीं मौका निकल न जाये
 संपर्क सूत्र +919898630756 
आध्यात्मिक चिकित्सा केन्द्र अलकापुरी सोसायटी विजलपोर नवसारी गुजरात 

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