Tuesday, March 3, 2020

आनन्दमय जीवन और जीवन में सफलता का सूत्र

आनन्दमय जीवन और जीवन में सफलता का  सूत्र 

जीवन में हम अक्सर सफल नही हो पाते आइए जाने इसका रह्ष्य 
               मानव जीवन अक्सर बहुत ही संघर्ष मय दिखता है । क्या इसके पार जाया जा सकता है? आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक की खोज में पता चला कि इसका मूल सार हमारे मन से जुडा हुआ है। ए मन क्या है यह हमारे विचारो की  एक लम्बी श्रंखला जो सदियों  से जुडा हुआ  है । हम हमारे  मन  में अक्सर  नकारात्मक सोच  विचार को संजोए रहते हैं। मन की स्मृतियों के तहखाने में न जाने कितनी कड़वी बातें, गांठें और पीड़ाएं कैद रहती हैं। अगर बात खुशी की हो तो तहखाने की बजाय वो दिल के आसपास रहती है, लेकिन दर्द, तिरस्कार, उपेक्षा जैसी बातें बरसों तक इस तहखाने में जमी रहती हैं। पता भी नहीं चलता कि कब आपकी हंसी-खुशी और चैन के पल छिन गए और आपका मन बीमार हो गया। दिल की गिरह खोल दो, चुप न बैठो. ‘रात और दिन’ फिल्म का यह गाना आज भी बहुत लोकप्रिय है। ये महज एक गाना नहीं, हम सबकी जिंदगी का सच है। समय-समय पर दिल की गिरह खोलना सबके लिए जरूरी है। ठीक उसी तरह, जैसे पुराना खाना रखे-रखे खराब हो जाता है, उसी तरह दिल के अंदर गिरह पड़े-पड़े गलने लगते हैं, नासूर बन जाते हैं। इससे होने वाले नुकसान इतने अधिक हैं कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते।  दिल के अंदर तहखाने में कैद गांठें हैं क्या? गुस्सा? अपमान? अवहेलना? ईर्ष्या? दर्द? कुछ साल पहले मेटाफिजीशियन डॉक्टर रश्मि अरोड़ा ने बचपन से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने का यही इलाज बताया था। उनका कहना था, ‘अपने अंदर गुस्सा रखना बेहद खतरनाक होता है। जब-जब आप कुंठित हों, गुस्से में हों, चुप न रहें। आप ठंडा पानी पिएं और घर के किसी एकांत या कोने में एक पुराने तकिए की धज्जियां उड़ाएं, किसी बरतन को तोड़ें और उनसे अपनी बातें कहें। अपने अंदर की पीड़ा को रिलीज करने के बाद आप पाएंगे कि आपकी कई क्रोनिकल बीमारियों का असर कम हो गया है।’ अपनी पीड़ा को आवाज देना और गुस्से को अभिव्यक्त करना जरूरी है। साइकोथेरेपिस्ट और एनर्जी हीलर एबी वाइन इस क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे हैं। अपनी किताब ‘हील योर इनर वूंड्स’ में वे कहते हैं, ‘आप अगर अंदर से हलके और साफ नहीं होंगे तो बाहर चाहे कितना भी प्रयास क्यों न कर लें, मानसिक और शारीरिक तौर पर बीमार रहेंगे।’ अपने आपको साफ करते रहने के लिए वे यह भी कहते हैं कि जब आप बच्चे होते हैं, बिना संकोच रोते हैं, गुस्सा निकालते हैं। बड़े होते-होते अपने जज्बातों को अपने अंदर रखने की कला में पारंगत हो जाते हैं। यह जज्बात अगर नकारात्मक हो तो उसका इलाज तुरंत करना जरूरी है। सद्गुरू मानते हैं, ‘ध्यान और योग से हम अपने भीतर की सफाई बहुत अच्छी तरह से कर सकते हैं। योग का प्रयोजन है, मन की गांठों को खोलना और उनका इलाज करना।’  पिछले दिनों कनाडा के ओंटेरियो यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन के अनुसार कुंठा और तनाव के लगभग 64 प्रतिशत मरीजों ने माना कि उन्हें इस बात का अंदाज नहीं था कि उनकी खास बीमारी की वजह अंदर दबा गुस्सा हो सकता है। यह गुस्सा दूसरों की वजह से शुरू होता है और अंतत: इसे आप अपने ऊपर निकालने लगते हैं।  कुछ मामलों में मरीजों ने अपने आपको नुकसान भी पहुंचाया। एबी कहते हैं, ‘आपको पता ही नहीं होता कि आपने अपने दिल में क्या-क्या भर रखा है। इसके लिए जरूरी है कि अपने आपको जानें। अगर कोई पुरानी बात आपको मथ रही है तो उसे जाने न दें। आप उस व्यक्ति को माफ कर दें और खुद को भी। इस तरह बिना बोझ के आप जिंदगी में आगे बढ़ पाएंगे।’ रास्ते के कांटे निकालते रहें- -आप अपने परिवार वालों, दोस्तों या विश्वसनीय लोगों से बात करें। पाएंगे कि आपने अपने अंदर जो गांठें बना रखी हैं, उनका कोई अर्थ नहीं है। जिंदगी में सबके साथ अच्छा-बुरा होता है। बात करेंगे तो मन हलका होगा और आपको पुराने दर्द से निजात मिलेगी। -अपने आप से बातें करें। अकेले कहीं घूमने जाएं। उन दिनों और स्थितियों के बारे में सोचें, जिनकी वजह से आपको पीड़ा हुई है। आप जोर से चिल्लाइए, गुस्सा निकालिए और जिसने भी आपको दुख पहुंचाया है, उसे माफ कर दीजिए। आप कहिए, मैंने तुम्हें मुक्त किया और खुद भी मुक्त हुआ। -अपने जज्बातों को लिखें। इससे भी आप हलका महसूस करेंगे। -आपको समझना होगा कि कुछ चीजों को बदलना आपके हाथ में नहीं। वर्तमान आपके साथ है, भविष्य सामने। इसे सही कीजिए। -अपने गुस्से और कुंठा को कम करने के लिए कुछ ऐसा काम कीजिए जो आपको पसंद हो, अपना मन कहीं और लगाएं। दूसरों की मदद करें। धीरे-धीरे आपको हलकापन महसूस होगा।

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