लोक रक्षक एवम पर्यावरण मानव अधिकार संस्था की तरफ से देशवासीयों को हार्दिक शुभेच्छा -DR.R.R.MISHRA
आइये जाने इस पावन पर्व का इतिहास
होली का
इतिहास : 5 खास बातों से जानिए बदलती परंपरा की पौराणिक दास्तान
हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष के अंतिम माह फाल्गुन की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया
जाता है। कहते हैं कि यह सबसे प्राचीन उत्सव में से एक है। हर काल में इस
उत्सव की परंपरा और रंग बदलते रहे हैं। वक्त के साथ सभी राज्यों में होली को
मनाने और उसको स्थाननीय भाषा में अन्य नाम से पुकारने लगे। आओ जानते हैं 5 खास बातें।
1.आर्यों की होलिका : प्राचीनकाल में होली
को होलाका के नाम से जाना जाता था
और इस दिन आर्य नवात्रैष्टि यज्ञ करते थे। इस पर्व में होलका नामक अन्य से
हवन करने के बाद उसका प्रसाद लेने की परंपरा रही है। होलका अर्थात खेत
में पड़ा हुआ वह अन्य जो आधा कच्चा और आधा पका हुआ होता है। संभवत: इसलिए
इसका नाम रखा गया होगा। प्राचीन
काल से ही नई फसल का कुछ भाग पहले देवताओं को अर्पित किया जाता रहा है।
इस तथ्य से यह पता चलता है कि यह त्योहार वैदिक काल से ही मनाया जाता रहा
है। सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में भी होली और दिवाली मनाए जाने के
सबूत मिलते हैं।
2. होलिका दहन : इस दिन असुर
हरिण्याकश्यप की बहन होलिका दहन हुआ था। प्रहलाद बच गए थे। इसी की याद में
होलिका दहन किया जाता है। यह होली का प्रथम दिन होता है। संभव: इसकी कारण इसे
होलिकात्वस कहा जाता है।
3.कामदेव को किया था
भस्म : इस दिन शिव ने
कामदेव को भस्म करने के बाद
जीवित किया था। यह भी कहते हैं कि इसी दिन राजा पृथु ने राज्य के बच्चों को
बचाने के लिए राक्षसी ढुंढी को लकड़ी जलाकर आग से मार दिया था। इसीलिए
होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।
4. फाग उत्सव : त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने
धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। होलिका दहन के बाद 'रंग उत्सव' मनाने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से प्रारंभ हुई। तभी से इसका नाम फगवाह हो गया, क्योंकि यह फागुन माह में आती है। कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है।
श्रीकृष्ण ने ही होली के त्योहार में रंग को जोड़ा था।
पहले होली के रंग टेसू या पलाश के
फूलों से बनते थे
और उन्हें गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत
अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था। लेकिन समय के साथ रंगों में नए नए प्रयोग किए जाने लगे।
5.मंदिरों में चित्रण
: प्राचीन भारतीय
मंदिरों की दीवारों पर होली
उत्सव से संबंधित विभिन्न मूर्ति या चित्र अंकित पाए जाते हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर
विजयनगर की राजधानी हंपी में है। अहमदनगर चित्रों और मेवाड़ के चित्रों
में भी होली उत्सव का चित्रण मिलता है। ज्ञात रूप से यह त्योहार 600 ईसा पूर्व से मनाया
जाता रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है।
No comments:
Post a Comment