Sunday, February 14, 2021

सदा खुश रहो स्वस्थ रहो मस्त रहो....! जीवन का रहस्य..? ध्यान विना सब सूना ..?

 
 
 
 सदा खुश रहो स्वस्थ रहो मस्त रहो....!
 जीवन का रहस्य..?
            आज मानव जीवन सबसे अधिक तनाव में हैं, बीमार है, भय से ग्रस्त है। शास्त्र के अनुसार ८४ लाख योनियां होती हैं जिसमें मनुष्य सिर्फ एक योनि है। और आधुनिक विज्ञान और धार्मिक परंपराओं के अनुसार इसी एक योनि में समस्त स्त्री और पुरुष हैं। आत्मा न स्त्री है न ही पुरुष । और हम अपने अपने धर्म शास्त्रों को सबसे पुराना बताने में लगे हैं। कोई अपने धर्म को हजारों वर्ष तो कितने लाखों में पहुंचाने की चेष्टा कर चुके हैं। और इसी तरह सभी अपने धर्म को हजारों लाखों वर्ष पुराना बताने में रूचि रखने से नहीं चूकते। और इस बात को कभी नहीं बताया जाता कि हम सभी एक ही योनि के दो भाग हैं। एक स्त्री और एक पुरुष हैं। और शास्त्रों के अनुसार स्त्री को अर्द्धांगिनी कहा गया है। परंतु पुरुष को अर्द्धांग नहीं, क्योंकि शास्त्रों को सिर्फ पुरुषों द्वारा लिखा गया है। और यदि हम सब मिलकर एक ही योनि के दो हिस्से हैं फिर इतना बखेड़ा क्यों है?
             मानव जाति में हजारों वर्षों से धार्मिक होने की बड़ी बड़ी घोषणाएं की जाती हैं। और अभी तक शरीर से ऊपर नहीं उठ पाये। मन को साधने आत्मा और परमात्मा की बातें सब झूठी हैं। मन तक पहुंचते ही आत्मा की यात्रा अपने आप शुरू हो जाती है। और आत्मा की यात्रा परमात्मा के बिल्कुल नजदीक है। जैसे समझो की दरवाजे पर खड़े हो गए। और दरवाजे पर रुकना फिर संभव ही नहीं हो सकती । समझो यात्रा लगभग पूरी हो चुकी। और जैसे आत्मा की समझ आ जाती है उसका आभास मात्र इन सभी परंपराओं से मुक्त हो जाता है।
                               मानव जीवन में यदि इसे बताया जाता है फिर सभी तथाकथित धर्म एक जगह घिर कर समाप्त होने की पूरी संभावना है। और दूसरी तरफ यदि बाकी योनियों को देंखे इतनी दुखी और कोई नहीं है। क्योंकि सब वर्तमान में आनंदमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। और हमारा जीवन भी वर्तमान में ही जी रहा है। परंतु हमारे विचार हमेशा इस पुरानी परंपरा को इतनी बार दोहरा चुका है कि अब वह हमारे अवचेतन मन में घर कर चुका है। जीवन हमेशा वर्तमान में है । और हम हमारे विचार हमेशा पीछे होते हैं अथवा आगे । इसी चक्कर में हमारा वर्तमान हमेशा से निकलता जाता है। और इसी कल के चक्कर में सदियां गुजर चुकी है। और यदि समझ में न आये तब गुजरती जायेंगी।

                   इस पुरानी परंपरा से छुटकारा मिलने का एक ही रास्ता है वह है ध्यान। वर्तमान में जीने के लिए हमें अब ध्यान को अपनाने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचा है। ध्यान के विना हम अब आनंदमय जीवन व्यतीत नहीं कर सकते हैं। ध्यान में किसी और को नहीं अपने आप को ही जानना है। ध्यान है स्वयं को जानने की कला। सुनने में बड़ा अटपटा लगता है जैसे आपको अपने ही नाम को जानना है। और सबसे बड़ी समस्या है हम सब जल्दी अपनी सुनते ही नहीं । कभी आपने देखा शरीर आपको प्रकृति से मिला है। मन समाज धर्म आदि कितने नये पुराने जालों से निर्मित हो रहा है। शरीर की हम कभी नहीं सुनते ‌। मन हमें हमेशा मुश्किल में डाल देता है। हम यदि शरीर की भी सुनना शुरू कर दें। फिर भी जीवन में कुछ जरूरी बदलाव आ सकता है। इसे आप गांवों देहात में देख सकते हैं। ज्यादातर लोग शरीर तक ही सीमित है और वे ज्यादा स्वस्थ दिखाई देते हैं।
                        ध्यान को भी असली अर्थ में प्रयोग किया जाना जरूरी है। ध्यान को भी तथाकथित धार्मिक गुरुओं ने अलग अर्थ देकर एक नया अपना दबदबा कायम कर चुके हैं। ध्यान आपको स्वयं का करना है न कि करवाने वाले का । और यदि आज सबसे अधिक तनाव बीमारी परेशानी है तो उसकी जड़ भी यही धार्मिक परंपरा और यही धार्मिक परंपराओं के तथाकथित अनुयाई ही हैं। अपना सिक्का अपना नाम दर्ज करवाने के लिए आज पूरे मानवजाति को भटकने पर मजबूर कर दिया गया है। और यह आनंदमय जीवन को भटकाने में किसी विशेष धर्म अथवा संप्रदाय का भाग नहीं है इसमें लगभग सभी सामिल है। और आज के संदर्भ में एक नया रिसर्च निकल कर सामने आया है। अब लगभग राजनीति भी इसी के सहारे चमकाई जा रही है। अब लगभग सभी पार्टियां कर्म को छोड़कर धर्म पर ही विजय पाने को तत्पर हैं। सबसे आगे अब वही होगा जो धर्म के नाम पर गुमराह करने में सबसे ज्यादा प्रचार प्रसार कर पाये। क्योंकि आज के समय में यह मानवजाति की सबसे बड़ी कमजोर नस हो चुकी है। धर्म के नाम पर संप्रदाय और जाति के नाम पर किसी को उत्तेजित करना और कोई भी काम करवाने में यह कुशल राजनेता जान चुके हैं। और अब सभी इसी राज को अपनाने लगे हैं।इस विराट संपत्ति की आड़ में सभी को भटकाने में समर्थता को अब सब अपनाने लगे हैं। और जैसे आज बडे से बडे धार्मिक तथाकथित धर्मगुरू की हालत आज खराब देखी जा रही है । ठीक इसी तरह धर्म के नाम पर व्यापार और् राजनीति  हो रही है । इसलिए अब यह खत्म होने के कगार पर है। प्राथमिक जरूरतो को पूरा करने के बजाय यह सबसे सटीक और सार्थक प्रयास समझने लगे हैं। परंतु यह फंडा अब पुराना हो चुका है।
   आज भी असली कहीं न कहीं जरूर जिंदा है इसीलिये यह चल रहा है । जिस दिन असली भी खतम हो जायेगा उसी क्षण ये नकली व्यापार और राजनीति अपने आप विदा हो जायेगी ।

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