प्रधानमंत्री अटलविहारी वाजपेयी के 95 जय़ंती विशेष
आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी भाषण कला को लेकर काफी मशहूर रहे। अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा गंभीर से गंभीर बातों को भी सहजतापूर्वक और चुटीले अंदाज में कह देतेथे। बात साल 1982 की है। सघन संगठन अभियान के तहत 3 अप्रैल 1982 को वाजपेयी जी बिहार के सीतामढ़ी आए थे। सीतामढ़ी की सभा में अपना भाषण शुरू करने से पहले उन्होंने कहा था, 'राशन कम मिला है, इसलिए भाषण कम देंगे'। उस समय पार्टी के तत्कालीन जिला संगठन मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता रामछबीला ठाकुर वाजपेयी जी के सहयोगी थे। ठाकुर बताते हैं कि सघन संगठन अभियान के तहत 3 अप्रैल 1982 को वाजपेयी जी सीतामढ़ी आए थे। प्रदेश नेतृत्व से कहा गया था वाजपेयी जी वहीं जाएंगे, जहां पार्टी मद में एक लाख रुपए दिए जाएंगे।
प्रदेश नेतृत्व की बातों को सीतामढ़ी जिला ने स्वीकार किया और वाजपेयी जी बुलाने की आग्रह किया। कार्यकर्ताओं के अथक प्रयास के बावजूद महज 51 हजार रुपए जुटाए जा सके। तत्कालीन जिलाध्यक्ष बद्रीप्रसाद चौधरी की अध्यक्षता में आयोजित जनसंपर्क अभियान में वाजपेयी जी को 51 हजार रुपए का चेक तत्कालीन कोषाध्यक्ष ने दिया। वाजपेयी जी ने भाषण शुरू करने से पहले कहा 'राशन कम मिला है, इसलिए भाषण कम देंगे'। तो चलिए आज उनके जन्मदिन पर जानते हैं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ऐसे ही कुछ भाषण...
1. 1998 में परमाणु परीक्षण पर संसद में संबोधन - 'पोखरण-2 कोई आत्मश्लाघा के लिए नहीं था, कोई पुरुषार्थ के प्रकटीकरण के लिए नहीं था। लेकिन हमारी नीति है, और मैं समझता हूं कि देश की नीति है यह कि न्यूनतम अवरोध (डेटरेंट) होना चाहिए। वो विश्वसनीय भी होना चाहिए। इसलिए परीक्षण का फैसला किया गया।'
2. मई 2003 - संसद में - 'आप मित्र तो बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं।'
3. 23 जून 2003 - पेकिंग यूनिवर्सिटी में - ''कोई इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकता कि अच्छे पड़ोसियों के बीच सही मायने में भाईचारा कायम करने से पहले उन्हें अपनी बाड़ ठीक करने चाहिए।
4. 1996 में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए - यदि मैं पार्टी तोड़ू और सत्ता में आने के लिए नए गठबंधन बनाऊं तो मैं उस सत्ता को छूना भी पसंद नहीं करूंगा।
5. जनवरी 2004 - इस्लामाबाद स्थित दक्षेस शिखर सम्मेलन में दक्षिण एशिया पर बातचीत करते हुए - ''परस्पर संदेह और तुच्छ प्रतिद्वंद्विताएं हमें भयभीत करती रही हैं। नतीजतन, हमारे क्षेत्र को शांति का लाभ नहीं मिल सका है। इतिहास हमें याद दिला सकता है, हमारा मार्गदर्शन कर सकता है, हमें शिक्षित कर सकता है या चेतावनी दे सकता है....इसे हमें बेड़ियों में नहीं जकड़ना चाहिए। हमें अब समग्र दृष्टि से आगे देखना होगा।
6. 31 जनवरी 2004 - शांति एवं अहिंसा पर वैश्विक सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर संबोधन - ''हमें भारत में विरासत के तौर पर एक महान सभ्यता मिली है, जिसका जीवन मंत्र 'शांति' और 'भाईचारा रहा है। भारत अपने लंबे इतिहास में कभी आक्रांता राष्ट्र, औपनिवेशिक या वर्चस्ववादी नहीं रहा है। आधुनिक समय में हम अपने क्षेत्र एवं दुनिया भर में शांति, मित्रता एवं सहयोग में योगदान के अपने दायित्व के प्रति सजग हैं।
7. 13 सितंबर 2003 - 'द हिंदू अखबार की 125वीं वर्षगांठ पर - ''प्रेस की आजादी भारतीय लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है। इसे संविधान द्वारा संरक्षण मिला है। यह हमारी लोकतांत्रिक संस्कृति से ज्यादा मौलिक तरीके से सुरक्षित है। यह राष्ट्रीय संस्कृति न केवल विचारों एवं अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करती है, बल्कि नजरियों की विविधता का भी पोषण किया है जो दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता।
8. 13 सितंबर 2003 - 'द हिंदू अखबार की 125वीं वर्षगांठ पर - ''किसी के विश्वास को लेकर उसे उत्पीड़ित करना या इस बात पर जोर देना कि सभी को एक खास नजरिया स्वीकार करना ही चाहिए, यह हमारे मूल्यों के लिए अज्ञात है।
7. 13 सितंबर 2003 - 'द हिंदू अखबार की 125वीं वर्षगांठ पर - ''प्रेस की आजादी भारतीय लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है। इसे संविधान द्वारा संरक्षण मिला है। यह हमारी लोकतांत्रिक संस्कृति से ज्यादा मौलिक तरीके से सुरक्षित है। यह राष्ट्रीय संस्कृति न केवल विचारों एवं अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करती है, बल्कि नजरियों की विविधता का भी पोषण किया है जो दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता।
8. 13 सितंबर 2003 - 'द हिंदू अखबार की 125वीं वर्षगांठ पर - ''किसी के विश्वास को लेकर उसे उत्पीड़ित करना या इस बात पर जोर देना कि सभी को एक खास नजरिया स्वीकार करना ही चाहिए, यह हमारे मूल्यों के लिए अज्ञात है।
9. 23 अप्रैल 2003 - जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर संसद में - ''बंदूक किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकती, पर भाईचारा कर सकता है। यदि हम इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के तीन सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होकर आगे बढ़ें तो मुद्दे सुलझाए जा सकते हैं।
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा' पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की यह मशहूर कविता आज भी लोगों की जुबान पर रहती है। बीजेपी के फाउंडर मेंबर के साथ अटल बिहारी वाजपेयी एक शानदार कवि भी थे और उनकी कई कविताएं मशहूर हुईं। वे हमेशा अपने भाषणों में अपनी कविताएं सुनाया करते थे। आज भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती है। उनका जन्म ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 में हुआ था। इस खास मौके पर यहां हम आपको अटल बिहारी वाजपेयी की 5 कविताओं के बारे में बता रहे हैं जो काफी लोकप्रिय हैं।
1: दो अनुभूतियां
-पहली अनुभूति
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
-दूसरी अनुभूति
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
गीत नया गाता हूं
2- कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
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