गुजरात के नवसारी जिले में भ्रष्टाचार बना शिष्टाचार ..? भ्रष्टाचार में शासन से अधिक प्रशासन जवाबदार ! सेवाभावी संस्थाओं के नाम पर डकैती..!
गुजरात आज भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे अधिक धनवान शक्तिशाली विकसित प्रज्ञावान राज्य के नाम से जताने की भरपूर कोशिश की जा रही है। परंतु क्या हकीकत में ऐसा ही है। शायद नही है। क्योंकि पहले कुछ वर्षों तक कोमप्युटर युग से हम परिचित नही थे। जैसे जैसे हम वैज्ञानिक युग के आधुनिक पद्धति में प्रवेश करते जा रहे हैं। वैसे वैसे एक एक पर्त की सत्यता दिखने लगी। मसलन रोजगार की समस्या । एक विरोध पक्ष के नेता द्वारा गुजरात की विधानसभा में पूछा गया सवाल के जवाब में मिले आकड़े रोजगार की धज्जियां उखेड़ कर रख दी। हालांकि मिले आकड़े गलत थे। सच्चाई कुछ और ही है। प्रति वर्ष करोड़ों रूपये सरकार सिर्फ़ नये रोजगार के अवसर के लिए खर्च कर रही है। फिर संख्या शून्य कैसे हो सकती है। इसकी हकीकत के लिए नवसारी जिले में सिर्फ तीन वर्षों में रोजगार से संबंधित सूचनाएं सूचना अधिकार के तहत मांगी गयी। जिसमें जो तथ्य निकलकर बाहर आये वह एक नये आयाम को जन्म दे बैठे। पता चला कि नवसारी जिले में रोजगार के आंकड़े मिले । उसके पहले नवसारी जिले में सूचना का अधिकार सबसे बड़े विभाग जिसमें करीबन तीन चौथाई नागरिकों की जिम्मेदारी दी गई है। नवसारी जिला पंचायत । अभी तक सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लागू ही नही हुवा। यहाँ नवसारी जिले के जिला पंचायत में किसी भी कानून को सिर्फ अपनी रखैल मानते हैं। कायदे कानून को धंधा बनाकर रख दिया है। इनकी मर्जी हुई तो मान लिया । और जब भ्रष्टाचार में फसने लगे । फिर मानने से इंकार कर दिया। एक बार खुद ही हुक्म करते है और जैसे ही फसने लगे तुरंत अपने ही हुक्म की जवाबदेही से इंकार कर दिया। इससे भी शरमजनक घटना तब घटी जब एक तालुका विकास अधिकारी मफत सूचना देने के नाम पर करीबन चालिस हजार रुपये अरजदार को भरने का फरमान जारी कर दिया। और यदि पैसा भरकर सूचना देने को हुक्म मिलता तो शायद कोरा चेक की बुक पर सही करवा लेते। क्योंकि एक पर एक ही बार एक ही बैंक से पैसा निकाला जा सकता है। एक तालुका विकास अधिकारी तो अरजदार को सीधा भारत की नागरिकता से ही बेदखल करने की धमकी दे डाली। एक तालुका विकास अधिकारी को अभी तक कुछ पता नही बोलकर अपने ऊपर ही सवाल खड़ा कर छोड़ दिया।आज रोजगार जैसे संगीन मसले पर दिन दहाड़े डकैती डाली जा रही है। और नवसारी जिले में यह खेल इसको अंजाम देने में कुछ सेवाभावी संस्थाओं ने अधिकारियों से मिलकर पूरा करती हैं। और जब इन संस्थाओं से लिखित में पूछा गया । अधिकतर संस्थान जिस पते पर इसको अंजाम दिया । आज उनका वहाँ कोई नामोनिशान शायद नही है। और रजी. पत्र वापस आ चुके हैं। एक संस्था ने रोजगारी की सत्यापन करने में मदद करने की जगह अरजदार पर ही सवालिया निशानो की झड़ लगाकर यह सावित कर दिया कि डकैती में सरकारी नियमो का पूरा खयाल रखा है। शायद यह भूल गये कि सरकार में आज एक पूर्व वित्त मंत्री के उपर ऐसे ही नियमो के तहद सरकारी सेवालय में भरपूर सेवा दी जा रही है। और इस संस्था को शायद पता नही कि सरकार इन्हें सेवा करने का लायसेंस दिया नही बल्कि खुद इन्होंने लिया है। मांगकर लिया है। किसी भी संस्था को विजनेस करने की छूट नही मिलती फिर भ्रष्टाचार करने की छूट किस प्रकार से मिलेगी। करोड़ों रुपये खर्च हुए फिर भी रोजगारों को संख्या कहां गई। एक दो महीने में इन तथाकथित संस्थाओं ने सभी प्रकार से टेक्नोलॉजी द्वारा शिक्षा दे दिया। ऐसे कई सवालो के जवाब देना होगा। और हद तो तब हो गई है कि इस खेल में प्रशासन भी आज मौन ब्रत ले चुका है। और ऐसे अधिकारी जिनका इस भ्रष्टाचार से दूर दूर तक कोइ लेना देना नही है। उन्हे चाहिए था कि भ्रष्टाचार का जमकर विरोध करें और सत्य का साथ दें। परंतु यहां इसके बिपरीत परिस्थितियां देखी जा रही हैं। और यदि कोई शंका लगे तब इसकी जांच भी करवाई जा सकती है। और जानकर हैरानी होगी कि इन अधिकारियों को इसी काम के लिए सरकार हर महीने लाखों रुपये वेतन देती है। और आज इन सभी के कामों को देखकर ऐसा लगता है कि सरकार के द्वारा दिया गया वेतन और सुविधाएं इनके काम के लिए नही बल्कि इनका हक है। और कुछ जब अड़चन लगे तब दो तीन नोटिस दे कर बैठ जाते हैं। केंसर जैसे रोग की सर्जरी करने की जगह उस पर मरहम लगा रहे हैं। आज रोजगारी जैसे मुद्दे पर भ्रष्टाचार एक संगीन जुर्म की तरह देखने के बजाय साइड इन्कम के रुप में देखा जा रहा है। अब सरकार आज ऐसे मुद्दे पर बदनाम हो रही है जिसके लिए वह प्रत्यक्ष जवाबदार नही है। जानकारो के हवाले से मिली खबरों के अनुसार सरकार को जागरूक होना चाहिए। और आज जब सभी डिजिटल हो चुका है। फिर ऐसे संगीन मुद्दे को आनलाईन करवाये। और मामला साफ हो जायेगा। रोजगार के नाम डकैती हुई है। फिलहाल इसकी जांच अब राज्य सरकार और भारत सरकार के सतर्कता आयोग के द्वारा शीघ्र करवाई जायेगी।
गुजरात आज भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे अधिक धनवान शक्तिशाली विकसित प्रज्ञावान राज्य के नाम से जताने की भरपूर कोशिश की जा रही है। परंतु क्या हकीकत में ऐसा ही है। शायद नही है। क्योंकि पहले कुछ वर्षों तक कोमप्युटर युग से हम परिचित नही थे। जैसे जैसे हम वैज्ञानिक युग के आधुनिक पद्धति में प्रवेश करते जा रहे हैं। वैसे वैसे एक एक पर्त की सत्यता दिखने लगी। मसलन रोजगार की समस्या । एक विरोध पक्ष के नेता द्वारा गुजरात की विधानसभा में पूछा गया सवाल के जवाब में मिले आकड़े रोजगार की धज्जियां उखेड़ कर रख दी। हालांकि मिले आकड़े गलत थे। सच्चाई कुछ और ही है। प्रति वर्ष करोड़ों रूपये सरकार सिर्फ़ नये रोजगार के अवसर के लिए खर्च कर रही है। फिर संख्या शून्य कैसे हो सकती है। इसकी हकीकत के लिए नवसारी जिले में सिर्फ तीन वर्षों में रोजगार से संबंधित सूचनाएं सूचना अधिकार के तहत मांगी गयी। जिसमें जो तथ्य निकलकर बाहर आये वह एक नये आयाम को जन्म दे बैठे। पता चला कि नवसारी जिले में रोजगार के आंकड़े मिले । उसके पहले नवसारी जिले में सूचना का अधिकार सबसे बड़े विभाग जिसमें करीबन तीन चौथाई नागरिकों की जिम्मेदारी दी गई है। नवसारी जिला पंचायत । अभी तक सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लागू ही नही हुवा। यहाँ नवसारी जिले के जिला पंचायत में किसी भी कानून को सिर्फ अपनी रखैल मानते हैं। कायदे कानून को धंधा बनाकर रख दिया है। इनकी मर्जी हुई तो मान लिया । और जब भ्रष्टाचार में फसने लगे । फिर मानने से इंकार कर दिया। एक बार खुद ही हुक्म करते है और जैसे ही फसने लगे तुरंत अपने ही हुक्म की जवाबदेही से इंकार कर दिया। इससे भी शरमजनक घटना तब घटी जब एक तालुका विकास अधिकारी मफत सूचना देने के नाम पर करीबन चालिस हजार रुपये अरजदार को भरने का फरमान जारी कर दिया। और यदि पैसा भरकर सूचना देने को हुक्म मिलता तो शायद कोरा चेक की बुक पर सही करवा लेते। क्योंकि एक पर एक ही बार एक ही बैंक से पैसा निकाला जा सकता है। एक तालुका विकास अधिकारी तो अरजदार को सीधा भारत की नागरिकता से ही बेदखल करने की धमकी दे डाली। एक तालुका विकास अधिकारी को अभी तक कुछ पता नही बोलकर अपने ऊपर ही सवाल खड़ा कर छोड़ दिया।आज रोजगार जैसे संगीन मसले पर दिन दहाड़े डकैती डाली जा रही है। और नवसारी जिले में यह खेल इसको अंजाम देने में कुछ सेवाभावी संस्थाओं ने अधिकारियों से मिलकर पूरा करती हैं। और जब इन संस्थाओं से लिखित में पूछा गया । अधिकतर संस्थान जिस पते पर इसको अंजाम दिया । आज उनका वहाँ कोई नामोनिशान शायद नही है। और रजी. पत्र वापस आ चुके हैं। एक संस्था ने रोजगारी की सत्यापन करने में मदद करने की जगह अरजदार पर ही सवालिया निशानो की झड़ लगाकर यह सावित कर दिया कि डकैती में सरकारी नियमो का पूरा खयाल रखा है। शायद यह भूल गये कि सरकार में आज एक पूर्व वित्त मंत्री के उपर ऐसे ही नियमो के तहद सरकारी सेवालय में भरपूर सेवा दी जा रही है। और इस संस्था को शायद पता नही कि सरकार इन्हें सेवा करने का लायसेंस दिया नही बल्कि खुद इन्होंने लिया है। मांगकर लिया है। किसी भी संस्था को विजनेस करने की छूट नही मिलती फिर भ्रष्टाचार करने की छूट किस प्रकार से मिलेगी। करोड़ों रुपये खर्च हुए फिर भी रोजगारों को संख्या कहां गई। एक दो महीने में इन तथाकथित संस्थाओं ने सभी प्रकार से टेक्नोलॉजी द्वारा शिक्षा दे दिया। ऐसे कई सवालो के जवाब देना होगा। और हद तो तब हो गई है कि इस खेल में प्रशासन भी आज मौन ब्रत ले चुका है। और ऐसे अधिकारी जिनका इस भ्रष्टाचार से दूर दूर तक कोइ लेना देना नही है। उन्हे चाहिए था कि भ्रष्टाचार का जमकर विरोध करें और सत्य का साथ दें। परंतु यहां इसके बिपरीत परिस्थितियां देखी जा रही हैं। और यदि कोई शंका लगे तब इसकी जांच भी करवाई जा सकती है। और जानकर हैरानी होगी कि इन अधिकारियों को इसी काम के लिए सरकार हर महीने लाखों रुपये वेतन देती है। और आज इन सभी के कामों को देखकर ऐसा लगता है कि सरकार के द्वारा दिया गया वेतन और सुविधाएं इनके काम के लिए नही बल्कि इनका हक है। और कुछ जब अड़चन लगे तब दो तीन नोटिस दे कर बैठ जाते हैं। केंसर जैसे रोग की सर्जरी करने की जगह उस पर मरहम लगा रहे हैं। आज रोजगारी जैसे मुद्दे पर भ्रष्टाचार एक संगीन जुर्म की तरह देखने के बजाय साइड इन्कम के रुप में देखा जा रहा है। अब सरकार आज ऐसे मुद्दे पर बदनाम हो रही है जिसके लिए वह प्रत्यक्ष जवाबदार नही है। जानकारो के हवाले से मिली खबरों के अनुसार सरकार को जागरूक होना चाहिए। और आज जब सभी डिजिटल हो चुका है। फिर ऐसे संगीन मुद्दे को आनलाईन करवाये। और मामला साफ हो जायेगा। रोजगार के नाम डकैती हुई है। फिलहाल इसकी जांच अब राज्य सरकार और भारत सरकार के सतर्कता आयोग के द्वारा शीघ्र करवाई जायेगी।
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