Friday, March 19, 2021

मानव जीवन में मन का पावर ...,,! मन के जीते जीत मन के हारे हार जो चाहो वह मिलेगा




मानव जीवन में मन का पावर ...,,!
  मन के जीते जीत मन के हारे हार 
जो चाहो वह मिलेगा 
आज जो मिला है वह आपने ही मागा हैं
आज आपकी जो हालत है उसकी एक मात्र जवाबदेही आप स्वयं है 

       आपके चाहने के वगर न कोई आपको दुखी कर सकता है न ही सुखी कर सकता है। यह सीधा साफ है और इसकी चाबी आपके यानी मन के पास है। और मन ही सुख और दुख का मालिक है। और मन के ऊपर काबू पाना बेहद आसान भी है और सबसे ज्यादा कठिन है। यदि इसका रहस्य समझ में आ जाय फिर सरल है। परंतु इसके लिए गहन साधना की जरूरत है। जैसे आप संकल्पवान होकर शुरुआत करेंगे फिर कुछ दिनों में ही धीमे धीमे सभी आसान और साफ साफ दिखाई देने लगता है। और यह धीरे धीरे आहिस्ता आहिस्ता जैसे जैसे आप संकल्पवान बन कर इस मन की यात्रा में चलते हैं यह बहुत ही रोचक हो जाता है। और सबसे बड़ी घटना यह घटती है। कि जब सब सीधे दिखाई पड़ता है। उसी सहज भाव में आप स्वयं हैरान हो जायेंगे कि यह सभी सुनिश्चित है।और आप उस सुनिश्चित होने के भाग बन जायेगे। फिर आप दृष्टा बन जायेगे। परंतु यह सभी एक गहन साधना के साथ शुरू होगा। मन को साधने के लिए एक विराट जीवन, विराट आनंदमय जीवन व्यतीत करने के लिए एक विशेष संकल्प और साधना की जरूरत है। इसलिए सबसे पहले इसे स्वयं बिना किसी मार्गदर्शक के मुश्किल है। क्योंकि सदियों से हम जिस वर्तुल में हैं। उसी को हमने सुख मान लिया है। अब उससे बाहर जाने के लिए किसी मार्गदर्शक जिसे उसका ज्ञान हो वही उसकी खबर दे सकता है। और वही उसका मार्गदर्शक बन सकता है। इसलिए गुरु भी एक उपाय है। भगवान शिव गुरु उपाय भी एक विकल्प बताया है। आज अधिकतर तथाकथित धार्मिक गुरुओं ने बिना खुद समझे जाने मार्गदर्शक बन गये। आज वह स्वयं दुखी हैं। जिसे स्पष्ट देखा जा सकता है। यह सीधा साफ है। मन को साधने के लिए दृष्टा बनने के लिए पूरा जोर लगाना पड़ेगा। परंतु एक बार संकल्प के पश्चात उस यात्रा में परम सत्ता की यात्रा में ही इतना आनंद मिलता है जिसे शब्दों में सिद्ध करना असंम्भव है। और जैसे घर में बैठकर आसमान सिद्ध नहीं किया जा सकता उसके लिए बाहर निकलना पड़ेगा। कुछ कदम साथ चलना पड़ेगा। सबसे बेहद आसान जानना पहले ज़रुरी है कि हम सभी वासनाओ के जाल से निकल नहीं पाते । और यदि वासनाओं की जड़ में जायें फिर वह हमारी मूल में है इसे भी समझें वही आपका मूल स्वरूप है। उसी से जन्म हुआ है और इससेे निकलना मतलब पूरे स्वरूप को बदलना इतना आसान नहीं है।  सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। स्त्रीयों को हमेशा सभी दूर रखना चाहते हैं। आखिर इतने आज सभी धर्म के तथाकथित अनुयाई भयभीत क्यों हैं। एक तरफ हम देवी कहते हैं ।और उसी देवी के स्वरूप को हम मंदिरों मस्जिदों में प्रवेश नहीं होने देते। यह सीधा साफ है। कि स्त्रियों से डर  परमात्मा को नहीं इन तथाकथित धार्मिक परंपराओं के मानने वालों को है। समस्या स्त्रियों में नहीं है। यदि समस्या स्त्रियों में होती तो डर उन्हें लगना चाहिए। परन्तु डर इन तथाकथित धार्मिक परंपराओं के अनुयायियों को है। और इतना डर भयभीत के पीछे रहस्य है। मेरे देखे जितना भयभीत तथाकथित धार्मिक परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ अनुयाई हैं। उतना आज एक संसारिक सामान्य इंसान नहीं है। और खुद भयभीत हो वही आपको मार्गदर्शन करने का दावा करे। भवसागर से पार उतारने की बात करे । आपको मोक्ष दिलाने की बात करे। जो कभी पानी में उतरा ही नहीं वह आपको तैरने की कला सिखाने की बात करे। उसे कैसे पता चल सकता है कि असली दर्द कहां है। "जिसके पैर न पड़ी बेवाई वो क्या जाने पीर पराई" जैसी कहावत सिद्ध होती नजर आ रही है। आज यही हालत लगभग सभी क्षेत्रों में देखा जा सकता है। आज के तथाकथित धार्मिक परंपराओं के तथाकथित धार्मिक गुरु हालांकि ऐसा कुछ भी नहीं है।आज आपके खेवनहार बनने का दावा ही नहीं बन चुके हैं। और इनकी  हालत सभी के सामने है। 
मन से पार पाने के लिए बिना मन को समझे पार नही पाया जा सकता।मन विचारों की श्रंखला विचारों का एक समूह है। विचारों को आने का कारण समझ में आये फिर उसके उद्गम स्थान को समझे बिना कम नहीं किया जा सकता। 
जिस जिस को आप चाहते हैं वह चाहे धन हो या धर्म,पद हो या प्रतिष्ठा । सभी आपके मन के खेल हैं। जिस को बहुत ज्यादा सोचते हैं। वह निश्चित ही आपके जीवन में उतरना शुरू हो जाता है। चाहे वह सुख हो या दुःख। आपके ज्यादा सोचने से वह एक मंत्र बन जाता है। और आपके अवचेतन मन में पहुंच जाता है। और जो अवचेतन मन में पहुंच जाता है।  वह आपके जीवन में घटने लगता है। यदि आप को दुःख नहीं चाहिए फिर उस दिशा में सबसे पहले आपको सोचना बंद करना पड़ेगा। अपने आपको सकारात्मक सोच से भरना पड़ेगा। भगवान महावीर ने कहा कि चित्तं मंत्र: । उसका यही अर्थ है कि बार बार एक ही सोच को दोहराते दोहराते वह एक मंत्र बन जाता है।अब इसे दोनो दिशाओं में देखा जा सकता है। इसीलिए प्रायः देखा जाता है कि गरीब और गरीब हो जाता है। अमीर और अमीर बन जाता है। सबसे पहले और आज तक सिर्फ भगवान महावीर के अलावा और किसी ने नहीं कहा कि ध्यान दो प्रकार का है। दो गलत और दो सही। व्यक्ति क्रोध की अवस्था में भी ध्यान को उपलब्ध कर लेता है। फर्क सिर्फ इतना ही होता है कि वह बेहोशी में होता है। और उसका परिणाम गलत ही होता है। ध्यान का अर्थ होश पूर्वक जीना है। ध्यान से मन को बेहद आसानी से जीत हासिल की जा सकती है। और उसके लिए साक्षी भाव से शुरू किया जाता है। हम करीबन नब्बे प्रतिशत से अधिक जीवन बेहोशी में निकाल देते हैं। उम्र पूरी हो जाती है। पता ही नहीं चलता। उसका सीधा साफ अर्थ है कि हम बेहोशी में जी रहे हैं। हमें यदि इससे निकलना है फिर साधना और गहन साधना की जरूरत है। सदियों से जन्मों जन्मों से हम एक ही वर्तुल निर्मित कर चुके हैं। और उसी को हम जीवन मान चुके हैं। इसी को लख चौरासी में भटकना कहा गया है। करोड़ों अरबों में कहीं कोई विरला निकल पाता है। जिसे हम भगवान महावीर, बुद्ध, पैगम्बर मोहम्मद, जीसस, गुरु नानक, जरथोस्त, कबीर सूरदास, रैदास, मीरा जैसे अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं। बाकी मन के सब व्यापार है। 
यदि आप को भी पता चल जाये कि आप कई जन्मों से यह एक ही काम कर रहे हैं फिर ऊबन आना स्वाभाविक है। परंतु सभी भूल जाता है। यह नैसर्गिक है। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध एक प्रयोग करवाया करते थे जिसमें आपको पिछले दो तीन जन्म दिखाई पड़ता है कि आप क्या कर चुके हैं। उससे वही दोबारा करने की आदत से छुटकारा पाने में सहायता मिलती है। और हमें एक नई दिशा मिलती है। परंतु आज यह सभी तथाकथित धार्मिक गुरुओ ने एक व्यापक व्यापार का रूप धारण करवा दिया। आज सबसे  अधिक धन ऐसे ही तथाकथित धार्मिक गुरुओ के पास दिखाई देता है। जिसे पहले नकार दिया गया था।आज उसकी ए प्राथमिकता दें रहे हैं। उसका परिणाम इन सबों की हालत प्रत्यक्ष देखी जा सकती है। और जो बचे हैं उनका जीवन एक सामान्य से भी कहीं खाली और उदास है। इस अंदर के खालीपन को धन दौलत से नहीं भरा जा सकता है। क्योंकि इसके लिए वहां कोई जगह नहीं है। आइये उस पवित्र शरीर को हम परमात्मा से भर दें। 

अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें-

करिश्मा नैसर्गिक आध्यात्मिक चिकित्सा केंद्र,विजलपोर, नवसारी गुजरात 
संपर्क सूत्र +91 9898630756


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