Sunday, March 28, 2021

आइये जाने होली क्यों मनाई जाती है?




होली क्यों मनाई जाती है?

कंस को जब आकाशवाणी द्वारा पता चला कि *वसुदेव और देवकी* का आठवां पुत्र उसका विनाशक होगा तो कंस ने वसुदेव तथा देवकी को *कारागार* में डाल दिया। कारागार में जन्मे देवकी के छ: पुत्रों को कंस ने मार दिया। सातवें पुत्र शेष नाग के अवतार बलराम थे जिनके अंश को जन्म से पूर्व ही वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया था। *आठवें पुत्र* के रूप में *श्रीकृष्ण* का अवतार हुआ। वसुदेव ने रात में ही श्रीकृष्ण को गोकुल में *नंद और यशोदा* के यहां पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या को अपने साथ ले आए। कंस उस कन्या को मार नहीं सका और आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने तो

*गोकुल में जन्म* ले लिया है। तब कंस ने उस दिन गोकुल में जन्मे सभी शिशुओं की हत्या करने का काम *राक्षसी पूतना* को सौंपा। वह सुंदर नारी का रूप बनाकर शिशुओं को विष का स्तनपान कराने गई लेकिन

*श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध* कर दिया। यह *फाल्गुन पूर्णिमा* का दिन था। अत: बुराई के अंत की खुशी में *होली* मनाई जाने लगी।




*होली* का त्यौहार *राधा-कृष्ण* के *पवित्र प्रेम* से भी जुड़ा है। बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना श्रीकृष्ण लीला का ही अंग माना गया है। *मथुरा-वृंदावन* की होली *राधा-कृष्ण* के *प्रेम रंग* में डूबी होती है।
बरसाने और नंदगांव की *लठमार होली* जगप्रसिद्ध है। होली पर
*होली जलाई जाती है..... अहंकार की..., अहं की..., वैर-द्वेषकी..., ईर्ष्या की..., संशय की..*
और *प्राप्त किया जाता है.... विशुद्ध,निश्छल,निःस्वार्थ प्रेम*





*प्रह्लाद और होलिका* का प्रसंग तो लगभग सभी लोग जानते हैं। माना जाता है कि होली पर्व का प्रारंभ *प्रह्लाद और होलिका* से जुड़ा है। दोनों की कथा विष्णु पुराण में उल्लिखित है। *हिरण्यकश्यप* ने तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया। अब वह न तो पृथ्वी पर मर सकता था, न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से, न पशु से। *वरदान* के बल से उसने देवताओं-मानव आदि लोकों को जीत लिया और विष्णु पूजा बंद करा दी, परन्तु पुत्र प्रह्लाद को नारायण की भक्ति से विमुख नहीं कर सका। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बहुत यातनाएं दीं परन्तु उसने विष्णु भक्ति नहीं छोड़ी। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अत: दैत्यराज ने होलिका को प्रह्लाद का अंत करने के लिए प्रह्लाद सहित आग में प्रवेश करा दिया परन्तु *होलिका* का वरदान निष्फल सिद्ध हुआ और वह स्वयं उस आग में *जल कर मर गई*। बस प्रह्लाद की इसी जीत की खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।


पुराने समय में एक राजा हुए उनका नाम था *राजा पृथु*। उनके समय में एक *राक्षसी* थी *ढुंढी*। वह नवजात शिशुओं को खा जाती थी। राक्षसी को वर प्राप्त था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा। न ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा लेकिन शिव के एक श्राप के कारण बच्चों की शरारतों से मुक्त नहीं थी। राजा को ढुंढी को खत्म करने के लिए राजपुरोहित ने एक उपाय बताया कि यदि *फाल्गुन मास की पूर्णिमा* के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और गर्मी, क्षेत्र के सभी बच्चे एक-एक *लकड़ी* एक जगह पर रखें और *जलाए*, मंत्र पढ़ें और अग्रि की *परिक्रमा* करें तो राक्षसी मर जाएगी। हुआ भी ऐसा ही इतने बच्चे एक साथ देखकर राक्षसी ढुंढी अग्रि के नजदीक आई तो उसका मंत्रों के प्रभाव से वहीं विनाश हो गया। तब से इसी तरह मौज-मस्ती के साथ होली मनाई जाने लगी

समस्त देशवासियों को लोकरक्षक हेल्थ केयर एवम पर्यावरण मानव अधिकार संस्था परिवार की तरफ से होली के पवित्र त्योहार पर हार्दिक शुभेच्छा


No comments:

नवसारी जिले में दक्षिण गुजरात वीज कंपनी लिमिटेड का पर्दाफाश -RTI

नवसारी जिले में दक्षिण गुजरात वीज कंपनी लिमिटेड का पर्दाफाश -RTI नवसारी जिले में DGVCL कंपनी के लगभग सभी सूचना अधिकारियों ने सूचना अधिकार का...