Friday, August 30, 2019

नवसारी जिला लेबर कमिश्नर की भुमिका लघुतम मासिक वेतन अमलीकरण में शंकास्पद.....?

नवसारी जिले में लघुतम मासिक वेतन धारा 1948 का अमलीकरण करवा पाने में लेबर कमिश्नर की भूमिका शंकास्पद..! आज गुजरात सरकार गरीबों मजदूरों आदिवासियों दलितों बेरोजगारो के उत्थान और विकास समृद्धि के लिए करोड़ों रूपये हर महीने खर्च कर रही है। और मजदूरों चौकीदारो कोम्प्युटर ओपरेटरो सफाई कामदारो छोटी बड़ी कंपनियों में काम करने वालो सरकारी कचेरियों नगरपालिकाओं होस्पीटलो संस्थाओं दक्षिण गुजरात वीज कंपनी के लगभग सभी विभागों में कार्यरत मजदूरों सिक्युरिटी में कार्यरत नागरिकों वगेरे में आज आजादी के71 साल बाद भी लघुतम मासिक वेतन धारा 1948 कायदेसर लागू नही हो पायी। पर्यावरण मानवाधिकार संस्था द्वारा संबंधित सभी अधिकारियों को लिखित और मौखिक रूबरू मुलाकात में आरटीआई के माध्यम से सूचना मागी गयी है। और इस की जवाबदेही सरकार के नियमानुसार लेबर कमिश्नर श्री की है। सूत्रों के हवाले से मिली खबरो के अनुसार प्राप्त सूचना यहाँ लिखना शब्दों के साथ अन्याय होगा। क्योंकि इसके लिए आज शब्दावली मे किसी भी शब्दों का प्रयोग नही हो सकता। लेबर कमिश्नर जैसे पद पर विराजमान सरकारी अफसर आज वर्षों से किस काम का वेतन ले रहे हैं। इसको समझ पाना आसमान से तारे तोडने के बराबर है। नवसारी जिले में उन्हें वेतन लेना सुविधाओं से लसालस का मजा लेना अच्छा लगता है। परंतु यहां सरकार के नियमानुसार कचेरी के तीन से पांच किमी रहना तो अलग नवसारी जिला रहने लायक नही समझते। और जब सिर्फ़ मौज मस्ती वेतन ही लेना मकसद हो तब उसके लिए सरकार के चंद अधिकारियों की हजूरी से काम चल जाता है।आज वर्षों से अपनी सत्ता का दुरुपयोग क्यों कर पाने में सफल हो रहे हैं। इसको समझना आम हो चुका है। उनके सर्वोच्च अधिकारी सूरत और गांधीनगर की हालत ऐसी ही है। अथवा आज नवसारी सूरत वलसाड तापी भरुच वगेरे की नही होती। नवसारी लेबर कमिश्नर सरकार के है कि भ्रष्टाचार करने वाले उद्योगपतियो और मजदूरों का पेट काटने वाले चंद अधिकारियों के । नवसारी लेबर कमिश्नर के साथ बाकी सभी जिले के लेबर कमिश्नरो को आज यह समझना होगा कि गुजरात सरकार के पास नोट छापने की मशीन नही है। उन्हें मिलने वाला एक एक रूपया इन्हीं गरीब मजलूम आदिवासी मजदूर दलित शोषित महिलाओं के खून पसीने और मेहनत मसक्कत की कमाई का है। कोइ भी उद्योगपति अथवा सरकारी शासन प्रशासन के नेता अथवा अधिकारी का नही है। यदि ए ही न रहे इन्हें इनके हक का मेहनत का भी न दिया गया फिर एक दिन ऐसा आयेगा कि भोजन और सुविधाएं ही नही पानी भी मिलना मुश्किल होगा। यहाँ किसी भी सरकार अथवा अधिकारी की टीका टिप्पणी का नही है। आज इस बढ़ती महगाई बेरोजगारी में इन्हे दो वक्त की रोटी तन के लिए कपड़ा और रहने के लिए मकान प्राथमिक सुविधाओं जिसकी हर मेहनत मजदूरी करने वाले नागरिकों का है।और सरकार इसे मुहैया करवाने के लिए दिन रात मेहनत करके नई नई योजनाओं के तहद दे रही है। और यह सभी तक आसानी से मिले इसके लिए हर संभव कोशिश के साथ एक पूरी फोज आप जैसे अधिकारियों की तैनात कर रखी है।फिर भी हालत बद से बदतर होना सभी राज्य सरकारों और देश के लिए दुर्भाग्य पूर्ण और शरमजनक है। देखना अब दिलचस्प होगा कि इस समाचार जो कि पूरे सबूतों के साथ लिखा जा रहा है हमारे संबंधित सभी अधिकारी शासन प्रशासन के साथ हमारे सभी पाठक जो बड़े ही आदर्श और संमानित है। इस समाचार में अपनी अपनी भूमिका में कार्यरत होते है अथवा गांधी के तीन बंदरो की तरह न सुनेगे न बोलेगे और अन्याय को देखकर भी न ही कुछ करेगें। यह समाचार समय के चक्र के उपर समय की राह देखना होगा। इस समाचार के उपर सभी अपनी नजर रखें हैं। जब कि उन्हे कायदेसर काम न करना

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