Tuesday, October 29, 2019

जीवन को आनंदमय बनाने का रहस्य

आनंदमय जीवन का रहस्य
   आज इस भागदौड़ भरी जिंदगी के वर्ष किस तरह गुजर जा रहे हैं। और गुजर गये। समझ में ही नही आया। पहले अपनी शिक्षा में 25 साल गुजर गये। फिर नौकरी फिर अपने भविष्य को सजाने सवारने का टेंसन । साथ  ही शादी फिर बच्चों को बडा करना उनकी शिक्षा। फिर उनकी शादी । दूसरे 25 वर्ष गुजर गये। पता ही नहीं चला। और इस आपा धापी भाग दौड़ मे अब तीसरा 25 वर्ष और शायद अंतिम भी इसी तरह ही सब गुजर जायेगा। आनंद मय जीवन जीने की इच्छा हर किसी की होती है। परंतु क्या किसी को प्राप्त हुवा। आज तक हमारी जिंदगी मे रात दिन की तरह सुख और दुःख आये । और गुजर गये।आनंद का पता ही नही। सुख और दुःख यह बाहर से मिलते हैं। और याद रहे जो बाहर से किसी और के द्वारा मिलता है। वह सभी समय के अधीन है। समय के साथ गुजर जायेगा। बचपन भी गया जवानी गई बुढापा भी जायेगा  । यहाँ तक कि यह शरीर भी । किसी और से मिली। जिसे भी हम बाहर से पाये वह सभी औरो के साथ समय के अधीनस्थ है। भले ही जिसने दिया वह न मागे परन्तु समय अपने साथ उसे भी ले जायेगा। 
            आनंद आपके भीतर से मिलेगा। उसे आप को स्वयं लाना होगा। उस आनंद का विपरीत कुछ भी नही है। न ही उसके लिए उसे समझने के लिए उसे समझने के लिए कोई शब्द हैं। न ही उसके लिए कोई उदाहरण है । जिसे मिला हम सिर्फ उसका नाम ही जानते हैं। उसे कैसा प्रतीत हुवा होगा । उसे शब्दों मे व्यक्त किया नही जा सकता। दुसरा कोई बता नही पाया । यहाँ तक कि जिसे मिला वह खुद नही बता पाया। मात्र इसारा ही किया जा सकता है। सभी ने सिर्फ इसारा ही किया। और ज्यादातर उन महान आत्माओ ने उसे प्राप्त करने के लिए आनंद को प्राप्त करने के लिए एक शब्द की तरफ जोर दिया है वह है ध्यान... ध्यान और मात्र  ध्यान...। 
ध्यान के लिए आज पूरा शाष्त्र है। ध्यान की आज लाखो विधियां ईजाद की गई है। और उसका आज एक दौड सी चल पडी है। आज सभी दावा कर रहे हैं। जिसे मिला । वह बता नही पाया। उन सभी ने सिर्फ यही कहा कि हम उसे न दे सकते हैं न ही आप ले पाओगे।चोरी और छीना झपटी डकैती नही डाली जा सकती। हम आपको इसारे से बता सकते हैं। जाना आपको स्वयं ही होगा। हम सिर्फ मील के पत्थरों जैसा ही इंगित कर पायेगें। जैसे कही लिखा है यह शहर 1200 कि.मी. । अब जाना आपको है। 
आज इसकी पुरी मार्केट तैयार है। उसे बेचने और खरीदने वालो की पूरा सहाबा है। न ही बेचने वालो को पता है न खरीदने वाले को। जो बेच रहा है न उसे पता है कि क्या दे रहा है ।क्योंकि उसे बेचने का कोई उपाय ही नही है।  उसे कैसे बेचोगे वह कोई वस्तु नही है। और उसे खरीदने वालों को पता नही है क्या खरीद रहे हैं। और बडे़ मजे की बात यह है कि इस व्यवहार और व्यापार में सभी धर्म शामिल हैं।  और यह आज सबसे बडे़ व्यापार के रूप में आज चल रहा है। आज इस व्यापार का कोई सर्वे रिपोर्ट भी किसी भी व्यक्ति से लेकर दुनिया के किसी सरकार के पास उपलब्ध नहीं हैं। और यह बडी ईमानदारी का धंधे के रुप में मान्यता बिना किसी के दिये ही मान्य है। और आज तक यही सुनते पाया गया कि सबसे बड़ा और सबसे महान है। शक करने की गुंजाइश भी नहीं है।  सरकार भी यही बनाते और बिगाड़ते हैं।  फिलहाल भारत में इसके सामने होना मतलब ...उसके सामने लिखने के लिए शब्दावली में शब्द नहीं हैं।

आनंदमय जीवन कैसे जियें ..? 
                     आज हमारे जीवन में आधुनिक वैज्ञानिक खोज ने शारिरिक कामों से लगभग छुटकारा ही दे दिया है। और जो व्यक्ति आज शरीर का जितना ज्यादा उपयोग श्रम करने में लगा रहा है। उसका जीवन हम़े दीन हीन दिखाई पड़ता है। वह आज की अति आवश्यक  वस्तुओं से दूर है। इसलिए हमारे पास उस श्रम की तरफ अंततः कोई दिलचस्पी नही होती। आज श्रम करने के लिए भी आधुनिक तौर तरीकों को खोज लिया है। जहाँ आपको मेहनत करने के लिए एक अच्छे धन  चुकाने पड़ते हैं। और आज हमारे जीवन में एक नये तरह की उदासी आ चुकी है। आज हमारे जीवनशैली में नई नई बीमारियों ने कब्जा कर लिया है। जिनका कोइ उपचार नही है। 
और यदि आज इन सभी से छुटकारा पाना है उसका एक मात्र उपाय है ध्यान।।।
ध्यान को काम में हमने शामिल कर लिया बस यहीं हम चूक गये । और एक क्षण की भूल हमे सदियों से सता रही है। जैसे आप को उत्तर जाना था और दक्षिण दिशा की तरफ चल दिये । अब हमारी मंजिल जितना हम जायेंगे उतना दूर हो जाती है। अब हम इतना दूर आ गये कि वापस लौटने की बात भी हमारे लिए असंभव हो चुकी। परंतु हकीकत में ऐसा नही है। आप इसी पल इसी क्षण रास्ता बदल सकते हैं। 
                   अब समय बदल रहा है। हम सभी ने कुछ भूल कर चुके हैं। हजारों साल से हम सभी धार्मिक शिक्षा लेते रहे । फिर भी हम लगभग सभी दुःखी हैं। कहीं लगता नही कि हम कुछ तो गलत कर रहे हैं। हम कहीँ काल्पनिक दुनिया में जी रहे है। और हम अभी तक कुछ भी हासिल न कर पाये। एक कदम आगे चलते है और एक कदम पीछे  । और दिन रात महीने वर्षों सदियों से हम भटक रहे हैं। हमें जाना था कहीं और पहुंच गये कहीं और । हम सभी को मालिक बना कर भेजा गया। हम गुलाम बन गये। धर्मो ने धार्मिक न बनाकर गुलाम बना दिया। और गुलामी की जंजीरें हीरे जवाहरात सोने से बना दी गयी। और हम लालच में आ गये। हमारे संस्कार भी आज गुलाम हो चुके हैं। काल्पनिक दुनिया में जी रहे भटके हुए जीवन दुःखी भटकती आत्मा जैसे कहीं हम पर अपना आधिपत्य जमा कर बैठ गये। आज लगभग सभी धर्मों की एक ही हाल है। कभी इनके नजदीक जाकर इनके अंतरतम में झाककर देखना । ए सभी काल्पनिक दुनिया में अभी भी जी रहे हैं। आपको मोक्ष का स्वर्ग का जन्नत का सपना बताते हुए और इनकी पकड़ अभी शरीर से ऊपर तक नही है। और हम इनकी कल्पनाओं के जाल में हैं। और हालत यहाँ तक हो चुकी है कि हम सदियों की गुलामी से अब गुलाम है यह भी लगभग भूल चुके हैं। और अब यह हमारे स्वभाव आदत बन चुकी है। और इसके धार्मिक व्यापारियों ने अपना आधिकारिक आधिपत्य जमाकर बैठ गये हैं। और अब सभी धर्म गुरुओं ने अपना फरमान भी जारी करने लगे। और इतनी बार दोहराया गया कि यही सत्य माना जाने लगा। परंतु ऐसा नही है। हकीकत में हम बाहर की कल्पनाओं में भटक रहे हैं। यह आध्यात्मिक होते हुए भी बाह्यात्मक हो चुके है। हमें अब कुछ अलग सोचना चाहिए। विज्ञान के वगर धर्म अधूरा है। विज्ञान का होना जरुरी है। अंधश्रद्धा से विज्ञान के विना छुटकारा नही मिलता। और हमे अब दिशा को बदलना जरूरी है। अब काम में ध्यान की आवश्यकता है। आज सभी अति आधुनिक खोजे काम में ध्यान से हुई हैं।

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