Saturday, October 5, 2019

स्वास्थ्य सुरक्षा:- मरीजों के अधिकार क्या हैं?

मरीजों के अधिकार ​
स्वास्थ्य सुरक्षा क्या है ?

                       स्वास्थ्य सुरक्षा सामाजिक-चिकित्सा धारण है । यह केवल मेडिकल नहीं है । इसलिए स्वास्थ्य सुरक्षा केवल बीमारी के समय इलाज तक सीमित नहीं है। इसका मतलब है जहां तक हो सके मरीज के शारीरिक , मानसिक तथा कल्याण को बढ़ावा मिल सके। स्वास्थ्य का अधिकार मौलिक अधिकार उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार स्वास्थ्य का अधिकार मौलिक अधिकार है , क्योंकि इसकी उत्पत्ति अनुच्छेद 21 में दिए गए जीने के अधिकार से होती है । स्वास्थ्य का अधिकार मानवअधिकार 1948 का मानवधिकार घोषाणपत्र का अनुच्छेद 21 यहा सुनिश्चित करता है कि हर एक को ऐसे मापदण्ड के साथ जीने का अधिकार है ।जो उसके तथा उसके परिवार स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त हों, जिसमें चिकित्सा अवधान तथा जरुरी समाज की सेवाएं एवं बीमारी , अपंगता, वृद्धावस्था आदि से संबंधित सुरक्षा का अधिकार शामिल हैं । मरीजों के अधिकार  सावधानी तथा मानव उपचार का अधिकार हर व्यक्ति को बिना धर्म, जाति , लिंग , आयु, वंश राजनीतिक संबंध, आर्थिक स्तर के भेदभाव के सशक्त स्वास्थ्य सावधानी एंव उपचार का अधिकार है।यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है कि सब को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ प्राप्त है।हर मरीज का इलाज सावधानी, मर्यादा एवं इज्जत के साथ किया जाना चाहिए।सभी दवाइयों जो मरीज को दी जाती है वह स्तर, फायदा, योग्य सुरक्षा के मापदण्ड पर खरी होनी चाहिए।हर मरीज को आपातकालीन इलाज की सुविधा का अधिकार है ।जब कोई बच्चा अस्पताल में दाखिल होता है तो उसे यह अधिकार है कि उसके साथ माता-पिता या अभिभावक रह सके।मरीजों की जांच सम्मानित तरीके से की जानी चाहिए।     
  2.   मनपसंद सुविधा का अधिकार

मरीज को किसी भी समय दोबारा सोचने का अधिकार है।मरीज को अपने इलाज का मेडिकल रिकार्ड लेने का अधिकार है । वह किसी अन्य व्यक्ति का लिखित रुप में इस रिकॉर्ड को लेने की जिम्मेदारी दे सकता है ।जहां तक हो सके मरीज को अपनी पसंद के अस्पताल एवं डॉक्टर से इलाज कराने का अधिकार प्राप्त है।मरीज को अपनी बीमारी के बारे में जानकारी मिलने के बाद यह अधिकार है कि वह इलाज करवाए या नहीं करवाए।यदि मरीज किसी डॉक्टर के इलाज से संतुष्ट नहीं है तो वह डॉक्टर बदल सकता है ।
3.    सुविधा ग्रहण करने का अधिकार
              इलाज एवं जांच से पहले मरीज को संबंधित इलाज तथा अन्य विकल्पों के बारे में जानने का पूरा अधिकार है ।जहां पर संभव हो वहां मरीज को इलाज से संबंधित खतरों, समस्याओं, इलाज के बाद प्रभावों, मृत्यु की संभावना, इलाज के असफल होने की संभावना के बारे में सूचना दी जा सकती है।मरीज से यह भी बताया जा सकता है कि इलाज की प्रक्रिया छात्रों के सामने की जायेगी या छात्रों के द्वारा की जायेगी।मरीज किसी भी इलाज एवं जांच करवाने से मना कर सकता है ।     
  4.    सूचना और इच्छा का अधिकार

मरीज को डॉक्टर के बारे में पूरी जानकारी लेने का अधिकार है। जो भी स्वास्थ्य कर्मचारी एवं डॉक्टर उसके इलाज के लिए जिम्मेदार है उसके बारे में सूचना ले सकता है ।मरीज को बताई गई एवं खरीदी गयी सभी दवाईयों के बारे में सूचना का अधिकार है। जिसमें शामिल है दवाइयों की कीमत, सुरक्षा तथा आसानी से लेने की जानकारी ।सभी दवाइयों पर लेबल होना चाहिए, उनकी बनाने वाले कंपनी का नाम लिखा होना चाहिए, दवाई की मात्रा तथा खाने का समय भी अंकित होना चाहिए। इसके अतिरिक्त दवाई का उद्देश्य, संभव प्रभाव, खाने की सावधानी  और यदि दवाई लेना मरीज भूल जाए या ज्यादा खा ले तो उससे संबंधित जानकारी ।यदि मरीज अस्पताल में है तो उसे ट्रांसफर करने या इलाज बदलने, छुट्टी देते समय उससे सलाह लेना आवश्यक है ।किसी भी मरीज का इलाज उसकी इच्छा के बिना नहीं किया जाएगा। नाबालिग मरीज की स्थिति में उसके माता-पिता या अभिभावक की इच्छा आवश्यक है। यदि मरीज इच्छा बताने में असक्षम है और इलाज में विलंब खतरनाक साबित हो सकता है तो डॉक्टर जरुरी इलाज या ऑपरेशन कर सकता है ।कोई शोध कार्य कनरे से पहले मरीज की लिखित मंजूरी लेनी आवश्यक है। मरीज को सही तरीके से इस शोध कार्य के उद्देश्य, तरीके तथा इससे संबंधित नुकसान एवं फायदे बताए जाने चाहिए।मरीज को अपनी बीमारी, इलाज, स्थिति, पूर्वानुमान तथा अन्य सभी रिकॉर्डों को देखने का अधिकार है ।      
5.    शिकायत सुधारने का अधिकार

मरीज को उचित क्षतिपूर्ति प्रक्रिया अपनाने का अधिकार।अस्पताल के डॉक्टर , स्टाफ या किसी अन्य बुरी प्रक्रिया के विरुद्ध मरीज को कानूनी सलाह लेने का अधिकार है ।मरीज को अस्पताल स्टाफ या डॉक्टर की लापरवाही , गैर  इंतजामी, गलत प्रक्रिया अपनाए जाने के कारण हुई चोट, तकलीफ, बीमारी के विरुद्ध मुआवजा लेने का अधिकार है।
6.    भाग लेने तथा प्रतिवेदन का अधिकार

मरीज के स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी निर्णय में मरीज को भाग लेने का अधिकार है ।हर व्यक्ति को निवारक तथा रोक नाशक दवाइयों , अच्छा स्वास्थ्य एवं सुविधा की जानकारी लेने का अधिकार है।     
 7.    स्वच्छ वातावरण का अधिकार
हर व्यक्ति को अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ वातावरण का अधिकार है । इसमें शामिल है चिकित्सा केंद्र, अस्पताल के कमरे या वार्ड तथा अन्य चिकित्सा संबंधी सुविधाएं।  मेडिकल लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अस्पताल अपने यहां नियुक्त डॉक्टर और कर्मचारियों की लापरवाही के लिए जिम्मेदार होगा.बालक के माता-पिता उपभोक्ता की तरह मानसिक पीड़ा के लिए मुआवजे के अधिकारी होंगे।कोई भी परामर्शदाता अपने जूनियर को यदि बिना उनकी काबिलियत जाने अपने जिम्मदारी का प्रत्यायोजन करता है तो यह लापरवाही मानी जायेगी।मरीज के प्रश्नों के प्रति डॉक्टर तथा स्टाफ उत्तरदायी होगा।डॉक्टर दवाईयों के नाम पूरा तथा साफ तरीके से लिखेंगे ताकि मरीज को समझने में आसानी हो।मरीज को उसकी बीमारी एवं इलाज के बारे में पूरी जानकारी देगा ताकि डॉक्टर एवं मरीज के बीच का विश्वास बना रहे।मरीज अपने इलाज, खान-पान के संबंध में डॉक्टर द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करेगा।डॉक्टरी रिकॉर्ड में पारदर्शिता होनी चाहिए, उनकी उचित देखरेख होनी चाहिए तथा वह मरीज को उपलब्ध होने चाहिए।नर्सिंग स्टाफ प्रशिक्षित होना चाहिए तथा उन्हें मेडिकल की वर्तमान जानकारी होनी चाहिए।मरीजों के प्रति डॉक्टरों , नर्सों तथा अस्पताल के अन्य कर्मचारियों का नजरिया मानवीय होना चाहिए , लाभ प्राप्त करने वाले व्यवसाय की तरह नहीं होना चाहिए।  मुआवजे के लिए दावा उपभोक्ता न्यायालयों में प्राइवेट अस्पतालों और डॉक्टरों की लापरवाही  के खिलाफ मुकदमे किए जा सकते हैं।जिला उपभोक्ता फोरम में 5 लाख रुपए तक के दावे किये जा सकते हैं ।राज्य उपभोक्ता आयोग में 5 लाख से 20 लाख तक के दावे किए जा सकते हैं और जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले के विरुद्ध अपील की जा सकती है ।राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में 20 लाख से ऊपर के दावे किए जा सकते हैं। और राज्य उपभोक्ता आयोग के विरुद्ध अपील की जा सकती है ।उपभोक्ता न्यायालय में मरीज और उसका मनोनीत एजेंट मुआवजे का दावा कर सकता है ।उपभोक्ता न्यायालय में शिकायत दर्ज करने के लिए कोई शुल्क नहीं देना होता है ।शिकायतकर्ता या उसका एजेंट शिकायत की प्रतिलिपि जमा करा सकते हैं ।शिकायत डाक के द्वारा भी भिजवाई जा सकती है ।शिकायत में शिकायतकर्ता का नाम, पता, हुलिया तथा प्रतवादी का नाम, पता, हुलिया। और शिकायत से संबंधित दस्तावेज यदि हैं तो उन्हें प्रस्तुत करना चाहिए।शिकायत पर शिकायतकर्ता का हस्ताक्षर होना चाहिए।यदि दावा देश की किसी दीवानी अदालत में समक्ष विचाराधीन है तो आयोग ऐसे किसी भी मुद्दे पर विचार नहीं करेगा।सरकारी अस्पतालों की लापरवाही के खिलाफ केवल दीवानी न्यायालयों में मुकदमे किये जा सकते हैं ।डॉक्टर के खिलाफ लापरवाही साबित करने की जिम्मेदारी मरीज या उसके आश्रितों पर होती है ।  अनौपचारिक मेडिकल अदालत मेडिकल अदालत एक अनौपाचारिक अदालती प्रक्रिया है। जिसमें मेडिकल लापरवाही से उत्पन्न मुआवजे के मुद्दों को पक्षों के बीच आपसी समझदारी से सुलझाया जाता है ।इसमें रिटायर जज, वकील , डॉक्टर तथा सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होते हैं ।इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सुझाव दिया है कि डॉक्टरों तथा कानूनी विशेषज्ञों की एक ईकाई का गठन किया जाए जो इस बात की पुष्टि करेगा कि लापरवाही हुई है या नहीं हुई है । इस पुष्टि के बाद ही कोई भी केस आगे बढ़ाया जायेगा । 
भारतीय चिकित्सा परिषद अधनियम, 1956 में आचार संहिता चिकित्सा व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य मानवता की सेवा करना है । धन कमाना गौंण उद्देश्य है ।चिकित्साकर्मी को विनम्र, सौम्य तथा धैर्यवान होना चाहिए।चिकित्सक को उपचार में वैज्ञानिक तरीके अपनाने चाहिए और इस सिद्धांत का उल्लंघन करने वालों से कोई संबंध नहीं रखना चाहिए।चिकित्सक को अपनी व्यावसायिक उपलब्धियों का लाभ अपने रोगियों तथा सहयोगियों को अवश्य पहुंचाना चाहिए।चिकित्सक को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीकों से मरीजों को लुभाने और अपने तथा अपनी व्यावसायिक कुशलता के प्रति उन्हें आकर्षित करने के लिए विज्ञापन का सहारा लेने जैसा काम नहीं करना चाहिए।हालांकि प्रैक्टिस शुरु करने, नये तरीके की प्रैक्टिस शुरु करने, पता बदलने की सूचना देने या कुछ समय तक  प्रैक्टिस बंद करने की सूचना प्रेस में देने में कोई बुराई नहीं है ।डॉक्टर को दूसरे डॉक्टरों द्वारा बनाई गई दवाएं बेचने अथवा डॉक्टरी सामान बेचने की दुकान नहीं खोलनी चाहिए, लेकिन रोगियों का शोषण किए बिना उन्हें दवाएं और डॉक्टरी सामान उपलब्ध कराने में कोई बुराई नहीं है ।डॉक्टर का ‘इलाज नहीं तो भुगतान नहीं’ के सिद्धांत पर चलना अनैतिक हैआम चलन में नहीं आने वाली ऐसी दवा मरीजो को देना अनैतिक है, जिसका फार्मूला खुद डॉक्टर को पता न हो।डॉक्टर को मरीज के पास उसी समय पहुंचने की पूरी कोशिश करनी चाहिए जो समय उसने मरीज को दिया है ।डॉक्टर को न तो मरीज को उसकी बीमारी के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताना चाहिए, न ही बीमारी को बहुत कम करके बतलाना चाहिए। मरीज, उसके संबंधियों और मित्रों को मरीज की हालत की जानकारी इस तरह से दी जानी चाहिए, जिसमें मरीज और उसके परिवार की भलाई हो।डॉक्टर हर व्यक्ति का इलाज करने के लिए बाध्य नहीं है। लेकिन नाजुक हालत में पहुंचे हर मरीज का उपचार कना डॉक्टर का कर्तव्य है ।एक बार किसी मरीज के इलाज का दायित्व स्वीकार कर लेने के बाद , डॉक्टर को उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, न ही मरीज उसके सगे-संबंधियों तथा जिम्मेदार मित्रों को पर्याप्त समय दिए बिना उसका इलाज छोड़ देना चाहिए।डॉक्टर को ऐसा सहायक नियुक्त नहीं करना चाहिए जो चिकित्सा कानून के तहत पंजीकृत न हो। ऐसे व्यक्ति को मरीज की देखभाल, उपचार या ऑपरेशन से जुड़े किसी भी काम से दूर रखा जाना चाहिए।गंभीर बीमारी वाले रोगियों के मामलों में , खास तौर पर ऐसी स्थिति में जब रोग तथा उपचार के बारे में कोई शंका हो या मुश्किलें आ रही हों, डॉक्टर को वरिष्ठ विशेषज्ञों से परामर्श लेना चाहिए।हिरासत में रखी किसी महिला के उपचार की जिम्मेदारी स्वीकार कनरे के बाद , डॉक्टर को उसका उपचार अवश्य करना चाहिए। अगर उसी समय डॉक्टर वैसा ही अथवा दूसरा गंभीर मामला देख रहा हो तो ऐसी स्थिति में वह उपचार कर पाने में अपनी असमर्थता महिला से जाहिर कर सकता हैडॉक्टर को अपने पास उपचार के लिए प्रत्येक संक्रामक रोगी की जानकारी स्वास्थ्य अधिकारियों को अवश्य देनी चाहिए। महामारी फैलने पर, उसे अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना बीमारी का उपचार जारी रखना चाहिए। भारतीय चिकित्सा परिषद में शिकायतों का निपटारा भारतीय चिकित्सा परिषद औऱ राज्यों की चिकित्सा परिषदें गंभीर व्यावसायिक बुरे आचरण अथवा चारित्रिक कमजोरी दिखाने वाले किसी कार्य के लिए पंजीकृत चिकित्सा कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है । संबद्ध चिकित्सा परिषद अपने रजिस्टर से गलत आचरण वाले चिकित्साकर्मियों का नाम हटा सकती है । निम्नलिखित गलत आचरण करने पर डॉक्टर के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है ।…रोगी के साथ व्यभिचार या इसी तरह का कोई गलत आचरण करना ।चिकित्साकर्मी को नैतिक दुराचरण से जुड़े अपराधों में अदालत द्वारा दंडित किया जाना।झूठे गुमराह करने वाले और अनुचित प्रमाणपत्र, अधिसूचना, रिपोर्ट या अन्य किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना ।औषधि अधिनियम को प्रावधानों का उल्लंघन करना ।डॉक्टर द्वारा ऐसे व्यक्ति को अधिसूचित औषधि बेचना , जिस व्यक्ति का उस डॉक्टर के अधीन इलाज नहीं हो रहा हो।किसी चिकित्सकीय, शल्य-चिकित्सीय या मोवैज्ञानिक अनिवार्यता के संकेत के बिना , गर्भपात या ऐसा कोई ऑपरेशन करना जो सामान्य परिस्थियों में करना गैर-कानूनी हो।ऐसे व्यक्ति को किसी आधुनिक चिकित्सा पद्धति का प्रमाणपत्र देना जिसके पास इस विषय की शैक्षिक और व्यावसायिक योग्यता न हो अथवा जो आयुर्विज्ञान से जुड़ा न हो।पत्र-पत्रिकाओं में ऐसे लेख तथा इंटरव्यू देना, जो आत्म-विज्ञापन तथा अपने पास उपचार के लिए लोगों को आकर्षित करने जैसे हों, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े विषयों पर अपने नाम से पत्र-पत्रिकाओं में लेख आदि लिखना वाजिब माना जाता है।किसी मैटरनिटी होम, सैनिटोरियम, अपंग अथवा अंधों के आश्रय-स्थल आदि की देखभाल कर रहे डॉक्टर का नाम विज्ञापित करना गलत है, लेकिन संस्था का नाम, भर्ती किए गए रोगियों तथा उपलब्ध सुविधाओं का विवरण तथा रोगियों को रखने की फीस का विज्ञापन किया जा सकता है ।असामान्य रुप से बड़ा साइन बोर्ड लगाना।साइन बोर्ड या दवाइयों की पर्ची पर अपने नाम, शैक्षिक तथा व्यावसायिक योग्यता, पद और विशेषज्ञता के क्षेत्र के अलावा अन्य बातें लिखना।इलाज के दौरान पता चली गोपनीय बातें किसी को बताना, लेकिन अदालत में न्यायाधीश के पूछने पर ऐसी बाते बताई जा सकती हैं।मरीज के पति या पत्नी , माता या पिता या फिर अभिभावक अथवा मरीज की स्वयं सहमति लिए बगैर उसका ऑपरेशन करना । अगर किसी ऑपरेशन से मरीज के संतान उत्पन्न करने में असमर्थ होने की आशंका हो तो ऐसा ऑपरेशन करने से पूर्व पति-पत्नी दोनों की सहमति लेना जरुरी है ।अपने रोगियों की अनुमति लिए बगैर पत्र-पत्रिकाओं में उनके फोटो या केस का विवरण प्रकाशित कराकर, उनकी  पहचान सबके सामने उजागर करना ।अपनी फीस की दरों का सार्वजनिक विज्ञापन करना, लेकिन अपने परामर्श कक्ष अथवा प्रतीक्षा कक्ष में ऐसी दरों को विज्ञापित किया जा सकता है ।मरीजों को बुलाने के लिए दलालों या एजेंटों की मदद लेना।चिकित्सा के किसी क्षेत्र में निर्धारित वर्षों तक अध्ययन और अनुभव प्राप्त किए बिना उस क्षेत्र का विशेषज्ञ होने का दावा करना । अगर कोई डॉक्टर स्वंय को चिकित्सा के किसी क्षेत्र का विशेषज्ञ घोषित कर देता हो तो उसके बाद उसे किसी अन्य क्षेत्र की चिकित्सा नहीं करनी चाहिए।अगर आपने डॉक्टर या अस्पताल की सेवाओं के लिए फीस दी है तो आप उपभोक्ता संरक्षण कानून के तह उन पर उपभोक्ता अदालत में मुकदमा चला सकते हैं। इसलिए डॉक्टर या अस्पताल को किए गए हर भुगतान के लिए रसीद अवश्य मांगे ।डॉक्टर या अस्पताल के अनुचित आचरण के खिलाफ आप सामान्य अदालतों में भी मुकदमा दायर कर सकते हैं। लेकिन यह विकल्प खर्चीला और बहुत समय लेने वाला है । इसलिए अन्य विकल्पों से समस्या का समाधान नहीं हो पाने पर ही अंत में यह विकल्प अपनाएं।

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