Sunday, December 20, 2020

आनंदित जीवन प्राप्त करने का रहष्य ..! असाध्य बीमारियों से मुक्ति के लिये एक बार अवश्य पढ़े




ध्यान बिना सब सूना
जीवन की समस्याओं का समाधान
नकारात्मक विचारों से मुक्ति
     आध्यात्मिक चिकित्सा केन्द्र 
                  डा.आर.आर.मिश्रा

        मन को न बनाएं कड़वी बातों का घर, जीवन में ऐसें आगे बढ जाती हैं।मन की स्मृतियों के तहखाने में न जाने कितनी कड़वी बातें, गांठें और पीड़ाएं कैद रहती हैं। अगर बात खुशी की हो तो तहखाने की बजाय वो दिल के आसपास रहती है, लेकिन दर्द, तिरस्कार, उपेक्षा जैसी बातें बरसों तक इस तहखाने में जमी रहती हैं। पता भी नहीं चलता कि कब आपकी हंसी-खुशी और चैन के पल छिन गए और आपका मन बीमार हो गया।

     दिल की गिरह खोल दो, चुप न बैठो... ‘रात और दिन’ फिल्म का यह गाना आज भी बहुत लोकप्रिय है। ये महज एक गाना नहीं, हम सबकी जिंदगी का सच है। समय-समय पर दिल की गिरह खोलना सबके लिए जरूरी है। ठीक उसी तरह, जैसे पुराना खाना रखे-रखे खराब हो जाता है, उसी तरह दिल के अंदर गिरह पड़े-पड़े गलने लगते हैं, नासूर बन जाते हैं। इससे होने वाले नुकसान इतने अधिक हैं कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते।

     दिल के अंदर तहखाने में कैद गांठें हैं क्या? गुस्सा? अपमान? अवहेलना? ईर्ष्या? दर्द? इंदौर में भड़ास कैफे कुछ यही काम कर रहा है। वहां जाकर आप अपना पेट भरने की जगह मन को हलका कर सकते हैं। आपके सामने मिट्टी के बरतन, पुराने टीवी सेट और दूसरे उपकरण होंगे, जिन्हें आप तोड़ कर अपना गुस्सा निकाल सकते हैं।

     कुछ साल पहले मेटाफिजीशियन डॉक्टर रश्मि अरोड़ा ने बचपन से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने का यही इलाज बताया था। उनका कहना था, ‘अपने अंदर गुस्सा रखना बेहद खतरनाक होता है। जब-जब आप कुंठित हों, गुस्से में हों, चुप न रहें। आप ठंडा पानी पिएं और घर के किसी एकांत या कोने में एक पुराने तकिए की धज्जियां उड़ाएं, किसी बरतन को तोड़ें और उनसे अपनी बातें कहें। अपने अंदर की पीड़ा को रिलीज करने के बाद आप पाएंगे कि आपकी कई क्रोनिकल बीमारियों का असर कम हो गया है।’

     अपनी पीड़ा को आवाज देना और गुस्से को अभिव्यक्त करना जरूरी है। साइकोथेरेपिस्ट और एनर्जी हीलर एबी वाइन इस क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे हैं। अपनी किताब ‘हील योर इनर वूंड्स’ में वे कहते हैं, ‘आप अगर अंदर से हलके और साफ नहीं होंगे तो बाहर चाहे कितना भी प्रयास क्यों न कर लें, मानसिक और शारीरिक तौर पर बीमार रहेंगे।’

      अपने आपको साफ करते रहने के लिए वे यह भी कहते हैं कि जब आप बच्चे होते हैं, बिना संकोच रोते हैं, गुस्सा निकालते हैं। बड़े होते-होते अपने जज्बातों को अपने अंदर रखने की कला में पारंगत हो जाते हैं। यह जज्बात अगर नकारात्मक हो तो उसका इलाज तुरंत करना जरूरी है।
      
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें 
करिश्मा चेरिटेबल ट्रस्ट 
आध्यात्मिक चिकित्सा केन्द्र 
विजलपोर नवसारी ( गुजरात )
मो.  +91 98986 30756
       +91 92278 50786




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