Wednesday, December 2, 2020

स्वतंत्र भारत के जलते प्रश्न - आधुनिक जीवन एवम प्राचीन शिक्षा




          स्वतंत्र भारत के जलते प्रश्न - आधुनिक जीवन एवम  प्राचीन शिक्षा
                          आज भारत नये आधुनिक वैज्ञानिक टेक्नोलोजी से हर पल अग्रसर हो रहा है। आधुनिक विज्ञान जीवन के हर पल में कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रहा है। इसे स्वर्ण युग के रूप में भी समझा जा सकता है। परंतु फिर इतनी उदासी क्यों है ? महोत्सव की जगह सभी असहाय क्यो नजर आ रहे हैं। खुशियों की बरसात होनी चाहिए फिर सब जगह गम का माहौल क्योंं नजर आ रहा है ? लगभग हर व्यक्ति उदास मुश्किलों से भरपूर दुःखो के सागर में डूबता नजर क्यों नजर आता है ? आज जब कि आधुनिक वैज्ञानिक टेक्नोलोजी ने जीवन की हर समस्याओं को क्षण में दूर करने में सफल है। आज सभी क्षेत्रों में विज्ञान ने ऐसी सुविधाएं उपलब्ध करवाई है जिसे पहले किसी राजा महराजा को मुश्किल से मिलती थी। कबूतर से समाचार भेजना सोचो क्या संभव होता होगा ? आज एक मोबाइल लाखो किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति को पलको में आपके सामने रख देता है। हजारों मुनीम की जगह एक मात्र कम्प्यूटर सभी हिसाब किताब सदियों तक सुरक्षित रखता है। दासीयों के पंखा झलने से हजारो गुना बढ़ियां एसी और मात्र एक पंखा बिना किसी विश्राम के गरमी और हिमालय जैसी ठंठक क्षण मात्र में देना शुरू कर देते हैं। हजारो मजदूरो का काम एक जेसीबी मशीन करने में कामयाब है। बैलगाड़ी घोड़ा गाड़ी जिसे वर्षों तक यात्रा नही कर सकते उसे हवाई जहाज घंटो में करने में सफल है। और ऐसा सभी क्षेत्रों में हर रूप में कामयाबी मिल चुकी है। परंतु फिर भी आज मानव जीवन दुःखी है ? लगता है कही कुछ चूक हो रही है ? कुछ हम भूल रहे हैं। कहीं गड़बड़ हो रहा है? आखिर महोत्सव की जगह मातम क्यो फैला है ? हर व्यक्ति उदास ही उदास नजर आता है ? लगभग सभी का एक ही जवाब जैसे तैसे जिंदगी कट रही है। सांसारिक जीवन में उदासी ही नही आज के सभी धर्मों के तथाकथित साधू संन्यासी फकीर मौलाना धर्मगुरु दुःखी हैं। सबसे अधिक धन उसके पास है जिसे जरूरत ही नही है। सबसे ज्यादा धन इकट्ठा करने में और उसी मात्रा में सबसे अधिक उदास सभी असाध्य बीमारियों से पीड़ित इसी समुदाय को देखा जा सकता है। यह एक दुःखी होने का महत्वपूर्ण पहलू है। दुःखी व्यक्ति किसी भी पद पर हो बीमारियों से युक्त किसी भी जगह विराजमान हो। आधुनिक वैज्ञानिक मत की माने तो उससे नकारात्मक उर्जा ही निकलती है। जो भी उसके सामने आयेगा वह भी ऐसी समस्या ऐसी बीमारी से पीड़ित होने की संभावना से भर जायेगा। आज भारत का एक बहुत बड़ा समुदाय लगभग सभी धर्मो का इन तथाकथित धर्मगुरुओं से त्राहिमाम हो चुका है। और ए तथाकथित असाध्य बीमारियों से असाध्य विचारों से प्राचीन ग्रंथो को असाध्य रूप देने में सफल ही नही भारत को अपंग बनाने में सक्षम हो चुके हैं। आज एक आधुनिक वैज्ञानिक हो अथवा एक सर्वोच्च सत्ताधीस हो, सरकारी अफसर हो। काले लाल पीले धागो, सोने चांदी जैसी धातुओं से अभी तक अपने आपको अलग नही कर पाया । आपको ऐसा लगता है कि यह सुःखी है। ए सोने चांदी वस्त्र मकान सत्ता वगेरे से न ही आनंद मिला है और न ही कभी मिल सकता है। और जब ए खुद सुखी आनंदित नही है फिर आपको कैसे सुखी कर सकते हैं। और जो ए सुख दे रहे हैं परंतु किसी को उसकी अनुभूति नही होती। पता ही नही चलता ए सभी किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। जो आपके पास न हो उसे दूसरे को कैसे दे सकते हो। परंतु ए तथाकथित धार्मिक साधु सन्यासी बांटते ही जा रहे हैं।
      आधुनिक भारत में प्राचीन शिक्षा भी जीवन में आज सबसे बड़ी समस्या है। आज इस वैज्ञानिक युग में सदियों पुरानी शिक्षा जिसकी आज कहीं कोइ जरूरत नही है सिकंदर भारत कब आया ? औरंगजेब और हिटलर का हत्याकांड ? भूगोल इतिहास, पुराना विज्ञान, गणित किसी काम का नही है। इस प्राचीन परंपरा में कामयाबी लेकर एक विद्यार्थी युवाओं की श्रेणी के उम्र में आकर उसे जब पता चलता है कि इसकी कोई जरूरत नही है वह अपने आप को ठगा ठगा असहाय अपंग महसूस करता है। बाराखड़ी इतिहास भूगोल की जरूरत किसी भी न सरकार को जरूरत है न किसी भी क्षेत्र के दफ्तर में। आज यह सब एक सामान्य कोम्युटर भी कर देता है।बैलगाड़ी की जानकारी और हवाई जहाज चलाना है। अब यह युवा इस प्राचीन शिक्षा के प्रमाण पत्र को लेकर भटकने में मजबूर हो जाता है। एक अजीब प्रतिभा का मालिक युवा एक प्रमाण पत्र लेकर नौकर बनने के लिये शहर शहर जिले मे राज्य मे भटकने में मजबूर हो चुका है। जिसकी जरूरत है उसकी शिक्षा नही मिली । जो वर्षो से शिक्षा लिया आज उसकी कोइ जरूरत नही है अब यह डिग्री सिर्फ एक कागज का टुकड़ा मात्र है। आज की प्राचीन शिक्षा पद्धति आधुनिक वैज्ञानिक युग में अभिसाप के समान है। आज लगभग सभी युनिवर्सिटी, विश्वविद्यालय युवाओं को गुलामी और नौकरशाह बनाने में वर्षो से कार्यरत हैं। और यह क्रम सदियो से चला आ रहा है। एक भी युनिवर्सिटी मालिक बनाने में सक्षम नही है।  परिणाम स्वरूप हालत बद से बदतर हो गई। आज हमारे देश के सर्वोच्च शिक्षणविदो ,भिन्न भिन्न क्षेत्रों के स्नातको के ऊपर अंगूठा छाप मालिक राज कर रहे हैं। और भारत की आर्थिक व्यवस्था भ्रष्टाचार बेकारी मंहगाई को दिशा और दशा बदलने के लिए शिक्षित सर्वश्रेष्ठ सर्वोच्च जानकर जिसे मालिक होना चाहिए था आज वह नौकर बना दिया गया। उसका मुख्य कारण उसे नौकर बनने की ही शिक्षा दी गई है। और यह युवा नौकरशाह बनकर एक गुलाम बन चुका है। आज देश का प्रतिभाशाली युवा नौकरी ढूंढ़ रहा है। जब कि अब समय आ चुका है कि भारत का युवाओं को नौकरी अपंग, अपाहिजों, असहाय कमजोर दिमाग वालो के लिए छोड़ देना चाहिए। और अपनी अपनी प्रतिभा में निखार लाने चाहिए। और आज सरकार पहलीबार खुद हर संभव मदद के लिए तैयार है। यह भारत के सुवर्ण युग होना चाहिए। हर जगह महोत्सव होना चाहिए। आज युवाओं को नये नये कदम उठाने की जरूरत है।नयी नयी खोज करनी चाहिए। भारत अभी लगभग सभी क्षेत्रों में अधूरा है। नयी आधुनिक खेती से लेकर पूरा आसमान खाली है। आज के युवा को नई पद्धतियों में विकास करना होगा। जमीन को एक दिन खाली करना होगा। अन्यथा खाने के लिए चीन की तरह कीड़े मकोड़ों को भोजन में सामिल करना होगा। न जमीन बचेगी न खेती होगी न भोजन मिलेगा । हम अभी भी सूर्य और चंन्द्रमा का भी उपयोग नही कर पाये। भारत जड़ी बूटियों का देश है। और एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी विदेश जा रहा है। भारत आज भी प्राकृतिक संसाधनो से भरा है। और हम अपने आप में न देखकर किसी और की तरफ सदियों से देख रहे हैं। अब समय आ चुका है कि सभी अपनी अपनी प्रतिभा को जगाने का प्रयास करें। यह समाचार उन युवाओं को समर्पित है जो आज एक नये विचारों से भरें हैं।

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