Friday, August 27, 2021

सूचना अधिकार अधिनियम 2005 में 8 (1) J को निजी खानगी में ऐतिहासिक फैसला ...!


       भारत वर्ष में जहां सूचना का अधिकार अधिनियम जन हित के साथ सरकार को पारदर्शी बनाने में सहयोग दें रहा है। हिन्दुस्तान के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के अनुसार आरटीआई से भ्रष्टाचार कम हुआ। वहीं एक कदम आगे लोक प्रिय योग पुरुष भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आरटीआई का मतलब सवाल पूछने का अधिकार कहा है। परंतु जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। भारत देश में सूचना का अधिकार अधिनियम आज आखिरी श्वास लेने के कगार पर है। उसमें विद्वानों के मंतव्य अनुसार उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में सूचना आयुक्त का पद लगभग सरकार ने अभी तक भरना उचित नहीं समझती । न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाली कहावत सरकार को ज्यादा ठीक लगती है। भारत देश के सबसे समृद्ध विकसित पारदर्शितापूर्ण राज्य गुजरात की हालत सबसे अलग है। यहां अधिकतर अधिकारियों और राज्य सूचना आयुक्त एक ही ज़बान में बोलते पाते जाते हैं। उसका मुख्य कारण लोक चर्चित में सूचना आयुक्त करार आधारित है। जिसमें नियमों की मानें तो सरकार के अधिकारियों से कायदे-कानून की बात करना मतलब रुपए तीन लाख महीने के वेतन से हाथ धोना बराबर है। इसलिए यहां सूचना आयुक्त अपील कर्ताओं को हमेशा सूचना मांगना गुनाह समझते और समझाते नजर आते हैं। 
आज गुजरात में अधिकारी घिसा-पिटा एक नियम जिसमें 8 ज का प्रयोग त्राहित पक्षकार वगैरह बताकर सूचना नहीं देते और गुजरात सूचना आयोग उस पर मोहर लगाने हेतु राह देखते हुए नजर आते हैं। परंतु मध्यप्रदेश के नवयुवक सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह जी ने जब से कमान संभाली है तब से पूरे भारत देश में एक नया दौर देखा जाने लगा है। और यदि कायदे कानून के जानकारों की मानें तो भारत देश को यदि बचाना है तो ऐसे अधिकारियों सूचना आयुक्त श्री जैसे हर विभाग में सरकार को सभी सुविधाओं के साथ नियुक्त करना आज की जरूरत है। आइये सूचना अधिकार अधिनियम के इस पवित्र नियम की हकीकत में सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह के एक हुक्म को देंखे और पाठक मित्रों से विनम्र निवेदन है कि इसे इतना शेयर करे कि एक बार सभी पढ़ने से मजबूर हो जायें। 










आइये कुछ अंश को इस तरह से समझने की कोशिश करें।
*मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग को नियुक्ति और चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के निर्देश दिया है। साथ ही जानकारी गलत तरीके से रोकने पर लोक सेवा आयोग के अधिकारी के विरूध दो विभिन्न मामलों में 25-25 हजार रुपये के जुर्माने के लिए कारण बताओ नोटिस के साथ जानकारी 15 दिन में देने के निर्देश जारी किए हैं। साथ ही सूचना आयुक्त ने कटनी के आवेदक श्री प्रकाश वर्मा और अन्य आवेदक दतिया के डॉक्टर पंकज श्रीवास्तव को भी ₹5000 - ₹5000 हर्जाना राशि देने के भी निर्देश दिए हैं।*

*इन दो  प्रकरणों में चिकित्सा अधिकारी की नियुक्ति के संबंध में जानकारी आरटीआई में देने से मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ने इंकार कर दिया था। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ने जानकारी  को रोकने के लिए धारा 8 (1) (J) के तहत व्यक्तिगत जानकारी का आधार बनाया। साथ में यह भी कहा कि धारा 11 के तहत तीसरे पक्ष से संबंधित होने की वजह से जानकारी नहीं दी जा सकती है। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपील की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के निर्णय को पलट दिया। सिंह ने लोक सेवा आयोग की कार्रवाई को कानूनी रूप से अवैध बताया। अपने आदेश में राज्य सूचना आयुक्त ने कहा कि धारा 8 (1) (J)  को आधार बनाते हुए लोक सेवा आयोग ने विधिक चूक की है क्योंकि इसी धारा में यह भी कहा गया है कि जो जानकारी संसद या विधानसभा को देने से इंकार नहीं किया जा सकता है वह जानकारी RTI  आवेदक को दी जा सकेगी। यहां सिंह में यह सवाल उठाया है कि अगर इस जानकारी को संसद या विधानसभा को देने से लोक सेवा आयोग इंकार नहीं कर सकता है तो RTI  आवेदक को देने से मना कैसे कर सकता है? सिंह ने साथ में यह भी बताया कि धारा 11 में मात्र तीसरे पक्ष के व्यक्ति की आपत्ति बुलाने की प्रक्रिया मात्र है यह जानकारी को नहीं देने का आधार नहीं बन सकता है। सूचना आयुक्त ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति की शासकीय पद पर नियुक्ति और चयन प्रक्रिया व्यक्तिगत जानकारी नहीं हो सकती है यह जनता के पैसे से जनता के प्रति जवाबदेह शासन में नियुक्ति की प्रक्रिया है जिसे जानने का हर एक आदमी को है। सिंह ने अपने आदेश में यह भी कहा कि आखिर किस बात का डर या भय लोक सेवा आयोग को सता रहा है कि वह चंद डॉक्टरों के क्वालिफिकेशन की जानकारी को छुपाने में जुटा हुआ है।* 

*इसके अलावा सिंह ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि  शासकीय सेवा में नियुक्ति और चयन प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी रखना संविधान की मूल भावना के अनुरूप है।  सूचना आयुक्त ने यह भी कहा कि इस पूरी चयन प्रक्रिया में डॉक्टरों के एजुकेशन सर्टिफिकेट के अलावा जाति प्रमाण पत्र भी सवालों के घेरे में है। एक डाक्टर के तो दो जाति प्रमाण पत्र हैं एक कटनी में 1990 में जारी हुआ और दूसरा सागर से 2005 में जारी हुआ। अपने आदेश में कई सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए सिंह ने बताया कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग को यह जानकारी देनी होगी क्योंकि वे जनता के पैसे से स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टर के पद पर नियुक्ति कर रहे हैं और जनता को जानने का हक़ है कि उनका इलाज  किन क्वालिफाइड डॉक्टरों द्वारा किया जा रहा है।* 
*अगर दो डॉक्टरों के स्कूल के प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र सामने आ जाते हैं तो इससे किसी क्या नुकसान हो जाएगा? सिंह ने अपने आदेश में यह भी कहा कि व्यक्तिगत जानकारी के नाम पर जानकारी को विधि विरुद्ध तरीके से रोकने के लिए सबसे ज्यादा गलत उपयोग धारा 8 (1) J का किया जा रहा है।*
*राज्य सूचना आयुक्त सिंह ने यह भी कहा कि एक ही विषय को लेकर के दो अलग-अलग कानून और नियमों के प्रावधान नहीं हो सकते हैं। मध्यप्रदेश शासन द्वारा राज्य  सूचना आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित सभी दस्तावेज जिसमे ACR भी शामिल है, की प्रमाणित प्रति आरटीआई में 2019 मे दी गई है तो फिर इसी शासन का दूसरा विभाग मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग किस नियम और कानून  के आधार पर चयन प्रक्रिया से संबंधित दस्तावेजों को रोक सकता है? मध्य प्रदेश लोक सेवा के आयोग ने उल्टे जानकारी छुपा कर इस चयन प्रक्रिया को और संदिग्ध बना दिया है।* 

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