नवसारी सूरत वलसाड जिले के सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों मजदूरों को लघुत्तम मासिक वेतन के साथESIC में हो रही है दिनदहाड़े डकैती ...!
निजी गैर सरकारी संगठनों कंपनियों में
क्या होगा ..?
सभी जिलों में श्रम आयुक्त कार्यालय सिर्फ और सिर्फ सरकारी तिजोरी में चूना लगाया -RTI
मजदूर के लिए बनाया labour act 1948 हुआ फाइलों और किताबों में 72 वर्षों से उम्र कैद
सभी कार्यालयों के मुख्य अधिकारीयों की जवाबदेही होने के बावजूद आरक्षण, सेटिंग डोंट कोम, बापू दर्शन से प्रभावित
भारत देश का सर्वोच्च सर्वश्रेष्ठ पारदर्शक समृद्धि विकसित राज्य गुजरात में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 से मिली सूचना के अनुसार अभी तक नवसारी सूरत वलसाड तापी जिलो में अभी तक गरीबों आदिवासियों मजूरों दलितों आर्थिक पिछड़े वंचित से आते कर्मचारियों मजदूरों की गरीबी का फायदा यहां जमकर उठाया जा रहा है। और आज तक मिली जानकारी के अनुसार इसकी जवाबदेही सभी कार्यालयों के मुख्य अधिकारी के साथ सभी जिलों में कार्यरत श्रम आयुक्त और सहायक नायब श्रम आयुक्त की है। नवसारी सूरत वलसाड तापी जिले के कलेक्टर कार्यालय से सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचना मांगी गई। किसी भी जिले में अभी तक इस कानून को लागू करवाना आज तक जिले के समाहर्ता जिला कलेक्टर तक नहीं समझा है। हालांकि यह दुर्भाग्यपूर्ण शरमजनक है। मददनीश श्रम आयुक्त कार्यालय इन जिलों में सिर्फ वेतन और सुविधाओं के लिए ही अपने आपको सफल मानता है। हालत इतनी गंभीर हो चुकी है कि गुजरात के सूचना आयुक्त तक ऐसे कानून को लागू करने अथवा अधिकारियों की जवाबदेही को सिरे से खारीज कर चुका है। इससे भी बदतर हालत तब पाई गई जब ऐसे संवेदनशील कानून को एक तालुका विकास अधिकारी ने सूचना अधिकार अधिनियम के तहत इसे धारा आठ से जिसे सिर्फ देश की निजता से जोड़ा गया है।और उसे तत्काल प्रभाव से बस चले तो रद्द भी करवा दे। हालांकि सभी जिले के कलेक्टर श्री और जिला पंचायतों में लगभग पढ़ें लिखे तालीम हासिल किये सर्वोच्च डिग्री धारकों को सरकार तैनात कर चुकी है। अब ऐसे सर्वश्रेष्ठ डिग्री धारकों की उपस्थिति में ऐसा संवेदनशील कानून का आज 72 वर्षों में लागू न हो पाना सरकार के साथ अधिकारियों के सामने क ई सवालिया निशान जरूर लगता है। परंतु यह मुद्दा फिलहाल गरीबी से जुड़ा है। इसलिए इसे जीवित रखना और चुनाव के दौरान भाषणों में काम आता है। और चुनाव जीतने का यह प्रमुख साधन है। यदि हकीकत में गरीबों को आदिवासियों को मजदूरों को दलितों वंचितों का उत्थान विकास कर दिया जाय फिर सभी राजनीतिक दलों की रैलियों में भीड़ जुटाने में काफी दिक्कत आ सकती है। और उससे भी बड़ी वजह इनकी फरियाद इनकी वकालत करने से किसी को कोई फायदा भी नहीं मिलता है। और यदि गरीबी खत्म कर दी जाये उसी के साथ एक घटना साथ ही घटती है कि अमीरी भी उसी वक्त खत्म हो जाती है। शासन प्रशासन की नेतागीरी अधिकारियों का अहंकार भी उसी समय मिट्टी में मिल सकता है। इसीलिए यह मुद्दा दोनों तरफ अतिसंवेदनशील होता है।
श्रम आयुक्त कार्यालय में निजी कंपनियों की जांच करने से जब अधिकारी कतराते हैं । फिर सरकारी अधिकारियों के कार्यालय में ऐसे कानून का पालन करवाना लोहे के चने चबाने के बराबर होगा। वैसे लगभग सभी जिलों में श्रम आयुक्त कार्यालय सूचना अधिकार अधिनियम से मिली सूचना और रूबरू जांच में पता चला कि यह मुद्दा गरीबी से जूझ रहे गरीबों आदिवासियों का है इसलिए इसे लागू करने में नुकसान होने का खतरा बना रहता है। यहां इन जिलों में लगभग सभी विभाग के मुख्य अधिकारी और श्रम आयुक्त कार्यालय इसे लागू करने करवाने में गुनाह भी समझते हैं।
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