Friday, June 21, 2019

RTI के भंवर मे फंसे ITI के अधिकारी...? "अब जाये तो जाये कहां" ?

         RTI के भंवर मे फंसे ITI के अधिकारी
         नवसारी टीएसपी के करोड़ों रुपये के हिसाब में हुई डकैती
लाखो रुपये की स्वरोजगार किट में आईटीआई के आचार्य ने पक्का
                      बिल न लेकर सरकार को लगवाया चूना
     *प्रायोजना वहीवटदार कार्यालय से दिये गये करोडो़ रूपये के फंड*
                *सहयोग मे उतरे आइटीआई के उच्च अधिकारी*

भ्रष्टाचार के खिलाफ सबूत होने के बावजूद भी १४ जिले के अधिकारी अपने आप को कलेक्टर से बडे़ पद पर बताया परन्तु भ्रष्टाचार के खिलाफ नही कर पाये कार्रवाई

सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ की अवहेलना में फंस गये प्रादेशिक नायब नियामक   जांच में नही दे पाये प्रो-एक्टिव डिस्क्लोझर , 

आरटीआई का बोर्ड लगाना गुनाह समझने वाले अधिकारी 
 "अब जाये तो जाये कहां"

                               आज गुजरात कुछ शासन प्रशासनिक अधिकारियों की वजह से बदनाम हो रहा है। सरकार चाहे जितना जोर लगा ले । जब तक ऐसे अधिकारी रहेंगे तब तक गरीबो, आदिवासियों, दलितों, किसानों ,आर्थिक  कमजोर  जैसे नागरिकों को कभी भी विकास नही हो सकता। ऐसा ही एक मामला आया है। प्रायोजना वहीवटदार वांसदा नवसारी जिले में। जिसमें आज सरकार करोडो रुपये दलितों गरीबो के विकास के लिये हर वर्ष खर्च करती है। परंतु आज तक इतनी मेहनत मसक्कत के बाद भी इनकी हालत सुधर नही रही है। उपर से सभी बीमारियों के शिकार क्यों हो रहे हैं। इसके साथ ही आदिवासी भाइयों की फरियाद। जिसके सत्यापन के लिए पर्यावरण मानव अधिकार संस्था के द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचनाएं प्रायोजना वहीवटदार कचेरी वांसदा से मागी गयी। सुत्रो  हवाले से मिली जानकारी के अनुसार सरकार के करोडो रूपये यहां सब मिल बांटकर विना किसी जात पात के भेद भाव के इस खुशी को मनाते हैं। कायदेसर वांसदा के प्रायोजना वहीवटदार ही इसके मुख्य जवाबदार हैं। मागी गयी सूचना के सभी जवाबदेही सिर्फ और सिर्फ उनकी और उनकी ही होती है। किसी भी को किसी भी योजना के तहत दिये गये फंड उस लाभार्थी तक पहुंचा कि बीच में भटक गया । उसके लिये एक पूरी टीम बनाई गयी है । परंतु आरटीआई के कलम 24 के जाल में बुरी तरह फसे सदर कार्यालय के उच्च अधिकारी श्री ने उस राशि को किस किस अधिकारी को दिया गया । उसकी भी जानकारी देकर सूचना को उन सभी के नाम पर भेज दिया । संजोगवस उसमे आईटीआई के अधिकारी का नाम आया। और वहीं से एक नये खेल का पर्दाफास होने की शुरूवात हुई । आईटीआई  बीलीमोरा जांच के दौरान अपनी उपर तक पहुंच बताने की कई कोशिश की। परंतु सभी इस खेल में अभी तक काम नही आया । और इस की जांच के लिये आईटीआई के उच्च अधिकारी सुरत को भेजा गया । परंतु सुरत जिले मे सदर अधिकारी श्री अपने आपको 14 जिले का अधिकारी कलेक्टर श्री से कई गुना बताते हुए आरटीआई के भंवर में फस गये। और  मिली सूचना के अनुसार दाल में काला मुहावरे को यहाँ अधिकारियों ने उल्टा कर दिया। यहाँ काले मे दाल फस गई ।  पता चला है कि सरकार को यहाँ अधिकारी कायदे को माने या न माने, परंतु सरकार के द्वारा भेजे गये फंड को बहुत दिल से मानते हैं। इतना मानते है कि एन केन प्रकारेण सभी को सिर्फ अपने ही दिल से नही लगाया,  सर्वश्रेष्ठ अधिकारियों को भी दिया । अब धीमे धीमे मामला जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है। अधिकारियों की हालत "जाये तो जाये कहां "जैसी देखी गई। हालत उच्च अधिकारियों की भी खराब देखी गई। एक अपील मे एक सामान्य अधिकारी जिनका अपना कोई अस्तित्व भी नही हैं। यह भूल गये कि वेतन लेने वाला हर नागरिक नौकरशाह ही नही नौकर ही है। अपने अंदर  १४ जिले हैं, कलेक्टर के पास एक ही जिला बताने वाले अधिकारी अब नेताओं की तरह बोल गये। कायदा कानून के विशेष जानकार सावित करने वाले अधिकारी सूचना के अधिकार मे बहुत बुरी तरह फसे। अभी तक १४ जिले ,पता चला कि ए अधिकारी जहाँ विराजमान हैं । वहीँ RTI 2005 आखिरी श्वास लेने की कगार पर है। सदर १४ जिले के अधिकारी के कार्यालय में RTI 2005 में अपील अधिकारी का कि सूचना अधिकारी का आजादी के 70 सालो के बाद और नियम के 14 साल के बाद भी अभी तक एक बोर्ड नही लगवा पाये। मोदी सरकार भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना ही नहीं अब तक बना देती। आज पता चला कि ऐसे अधिकारी ही पूरी करने मे बाधा हैं। आज तक १४ जिले के अधिकारी के कार्यालय मे हाजरी लगाने के लिए एक सामान्य डिझिटल मशीन तक नही। अन्य अधिकारी कर्मचारी कब आये गये कोई जानकारी नही है। पता चला कि ए १४ जिले के अधिकारी खुद ही कभी समयसर नही आते । आज तक 14 जिले के अधिकारी के मुख्य कार्यालय मे अभी तक सीसी टीवी नही है। जिसे आज सुरक्षा के लिए अनिवार्य कर दिया है। 14 जिले के अधिकारी श्री के कार्यालय में एक भी सुरक्षा गार्ड नही है। १४ जिले के अधिकारी के कार्यालय में जब फरजीयात रखना सभी कार्यालयों मे जरूरी सूचना को जब लिखित में जब मांगा गया । कायदा कानून के विशेष तजुर्बे वाले 14 जिले के अधिकारी करीबन आधे घंटे पढ़ने के बाद अपनी सही को मिटा कर रिसीव करने बाहर भेजा। और अब बारी उन्हें लिखित में अनिवार्य रखना जरूरी सूचना मे हालत बद से बदतर पाई गई।अब जब सभी कार्यालयों में प्रो-एक्टिव डिस्क्लोझर ओडिट करवा कर आम नागरिकों के लिए रखना अनिवार्य होने के बावजूद इन महाशय को पता नही है। फिर अपने चोदह जिलों में क्या किया होगा अंदाजा लगाना मुश्किल नही । गुजरात के प्रमुख सूचना अधिकारी कमिश्नर के एक हुक्म के अनुसार सदर महाशय सुपर विजन ओथोरिटी भी हैं। अब जब ए अपने ही कार्यालय में अनिवार्य नियम का पालन नही कर रहे है फिर आगे भगवान भरोसे ही चल रहा होगा। गुजरात के मुख्य सूचना अधिकारी के कार्यालय से टेलीफोनिक मुलाकात में पता चला कि कार्रवाई करने के लिए एक फरियाद की जरूरत है। और निवेदन के अनुसार गुजरात के मुख्य सूचना अधिकारी को भेजा गया है। अब देखना होगा कि 14 जिले के अधिकारी श्री कायदे कानून का पालन करते है या उन्हे भी अरजदारो की तरह गुमराह करने मे सफल भूमिका निभा पाते हैं।

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